और ये लगभग हम सभी के साथ ही होता है . और इसका मुख्य कारण है हमारा दिमाग .हम अपने pre -loaded thought processes को अपनी दोस्ती और अपने प्रेम पर लागू करते है और एक सुन्दर से जीवन का कबाड़ा कर डालते है .
ये ध्यान रखे की जीवन में प्रेम और दोस्ती बहुत ही मुश्किल से मिलती है . लेकिन दोस्ती या प्रेम करना और इन दोनों को निभाना , वाकई बहुत मुश्किल का कार्य होता है . हम दिल से निभाना चाहते है लेकिन हमारे दुष्ट दिमाग का क्या करे.. वह इन दोनों में हस्तक्षेप करता है और इस तरह से जीवन की सबसे मूल्यवान वस्तु हमारे हाथ से निकल जाती है .
याद रखे की प्रेम या दोस्ती में दुनियादारी या व्यवहार की कोई जरुरत नहीं होती है , वहां तो सिर्फ आप दोनों ही होते है .
इसलिए मेरी विनंती है आप सभी से , कृपया अपना दिमाग को इन दो बातो में न लाये और न ही अपनी जुबान को अधिकार दे कि वो इन दोनों भावो में कुछ कहे. याद रखे , इन दोनों बातो में शब्दों की कोई जरुरत ही नहीं है , यहाँ किसी भी व्यवहार की जरुरत नहीं है , क्योंकि प्रेम और मित्रता में ईश्वर का सच्चा वास होता है
प्रणाम
स्वामी प्रेम विजय
5 comments:
बहुत सार्थक , शिक्षाप्रद पोस्ट , आभार
sarthak post...
बिलकुल आपकी बात से सौ प्रतिशत सहमत हूँ .... आभार
विजय जी बहुत सुन्दर और सटीक आलेख लिखा है काश इस जज़्बे को दुनिया समझ सके।
खूबसूरत प्रस्तुति ||
बधाई ||
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