सत्य के दिशा में सबसे बड़ा अपराध तो तब हो जाता है , जब हम सत्य के संबंध में रूढ़ धारणाओं को बच्चो के ऊपर थोपने का आग्रह करते है ! यह अत्यंत घातक दुराग्रह है !
परमात्मा और आत्मा के संबंध में विश्वास या अविश्वास बच्चो पर थोपे जाते है ! गीता, कुरान, कृष्ण , महावीर उन पर थोपे जाते है ! इस भांति सत्य के संबंध में उनकी जिज्ञासा पैदा ही नही हो पाती है ! वे स्वयं के प्रश्नों को ही उपलब्ध नही हो पाते है , और तब स्वयं के समाधानों को खोज लेने का तो सवाल ही नही है !
बने-बनाये तैयार समाधानों को ही वे फिर जीवनभर दुहराते रहते है ! उनकी स्थिति तोतो के जैसी हो जाती है ! पुनरुक्ति चिंतन नही है ! पुनरुक्ति तो जड़ता है ! सत्य किसी और से नही पाया जा सकता है, उसे तो स्वयं ही खोजना और पाना होता है !
---- ओशो
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