अंतर्यात्रा --ये मेरा एक छोटा सा प्रयास है अपने भीतर की यात्रा पर चलने का .. हम सब बाहर की यात्रा पर चल रहे है .. कभी कभी थोडा सा समय ज़िन्दगी से चुराकर अपने भीतर की यात्रा पर चले... और ये यात्रा एक अध्यात्मिक यात्रा बन जायेंगी ... THE INNER JOURNEY IS A SMALL MOVEMENT BY ME TO TRAVEL INSIDE WHEN EVERYTHING ,ALL THE DOORS ARE CLOSED .. THIS INNER JOURNEY WITH THE SUPPORT OF SPIRITUALITY HELPS US TO FIND THE BETTER PERSON INSIDE US.
Sunday, November 21, 2010
आईये धन्यवाद दे.......!!!
आईये धन्यवाद दे अपनी माता पिता को जिन्होंने हमें जन्म दिया और हमें पाला पोसा .
फिर धन्यवाद दे धरती माता को जो हमारा भार सह रही है और हमें जीने के लिए संसाधन देती है.
फिर धन्यवाद दे नदियों को जो हमें पानी देते है.
फिर धन्यवाद दे खेतो को और किसानो को जो हमें अनाज देते है.
फिर धन्यवाद दे उन सभी पेड़ पौधों को और जड़ी बूटियों को जो हमें फल,फूल और औषधि देते है.
फिर धन्यवाद दे चन्द्रमा और तारो को जो की हमें रौशनी देते है , जब सुरज डूब जाता है.
फिर धन्यवाद दे सूरज को जो हम पर कृपा भाव रखकर हमें सिर्फ रौशनी देता है.
और सबसे अंत में धन्यवाद देवे उस परमपिता ईश्वर को जो बिना कहे ही हमारे दुखो को दूर करता है और हमें ज़िन्दगी जीने का एक महान अवसर देता है.
प्रणाम !!!!
Saturday, September 4, 2010
धार्मिकता से आध्यात्मिकता
धर्म भगवान के नाम पर एक व्यर्थ की कवायद है. जिससे सिर्फ हानि ही हुई है, मानवता की और कुछ नहीं . मानव जाती पर धर्म एक बहुत बड़ा धब्बा है.
मैंने कहीं पढ़ा है कि धर्म के नाम पर, युद्ध से भी ज्यादा लोग मारे गए हैं. ये एक शर्म की बात है, भगवान ने कभी भी नहीं कहा होंगा की धर्म के नाम पर हत्याए करो , या धार्मिक बनाओ , या मेरी पूजा करो . लेकिन सारे संसार के सारे धार्मिक नेताओ ने सिर्फ यही एक काम किया है की ज्यादा से ज्यादा लोगो को धार्मिक बनाया जाए.
अब सही अर्थो में जरुरत है की धर्म से आध्यात्मिकता में रूपांतरण हो . जो कोई भी धर्म हो, जो कोई भी भगवान या अवतार हो , हम सरल एजेंडा भूल रहे हैं की सभी इंसानों के बीच प्यार और अधिक दोस्ती हो . हमारे पास लड़ने के अधिक कारण है , बनिस्पत की प्यार के और दोस्ती के. ये मानव युग की और समाज की एक व्यथा ही है.
मैंने कहीं पढ़ा है कि धर्म के नाम पर, युद्ध से भी ज्यादा लोग मारे गए हैं. ये एक शर्म की बात है, भगवान ने कभी भी नहीं कहा होंगा की धर्म के नाम पर हत्याए करो , या धार्मिक बनाओ , या मेरी पूजा करो . लेकिन सारे संसार के सारे धार्मिक नेताओ ने सिर्फ यही एक काम किया है की ज्यादा से ज्यादा लोगो को धार्मिक बनाया जाए.
अब सही अर्थो में जरुरत है की धर्म से आध्यात्मिकता में रूपांतरण हो . जो कोई भी धर्म हो, जो कोई भी भगवान या अवतार हो , हम सरल एजेंडा भूल रहे हैं की सभी इंसानों के बीच प्यार और अधिक दोस्ती हो . हमारे पास लड़ने के अधिक कारण है , बनिस्पत की प्यार के और दोस्ती के. ये मानव युग की और समाज की एक व्यथा ही है.
भगवान तथा भगवान को समर्पित सारे धर्म ग्रंथों और पुस्तकों का एक ही सार है की हम एक दूजे से प्रेम करे , मित्रता का भाव रखे .
मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है. आईये हम ये प्रण करे की हम धार्मिक से ज्यादा आध्यात्मिक हो , भगवान की creations के प्रति हम प्रेम का भाव रखे , प्रकृति की ओर ध्यान दे, जो हमें जीवन देते है , उन संसाधनों की रक्षा करे. एक दूसरे को प्यार करे एक दूसरे की मदद करे . हम पहले इंसान बने , फिर बाद में ही एक आदमी या एक औरत. यही असली धार्मिक प्रयास है और यही भगवान की असली पूजा है .
प्रणाम !!!
Wednesday, September 1, 2010
Tuesday, August 31, 2010
प्रेम पाने के लिए प्रेम करे....खुद से तथा औरो से !!!
यदि आप चाहते हैं की आपको लोग प्यार करे . तो ये बहुत आसान है, पहले आप खुद को प्रेम करो और फिर बाद में दूसरो को . आप हैरान होंगे कि आपको लोग पहले से ज्यादा प्यार कर रहे है .
सबसे पहले व्यक्ति आप हो , जिसे आपने प्यार करना चाहिए .
तो पहले आप अपने जीवन से प्यार करिए . आपके जीवन में चुनौतियों हो सकती है, हो सकता है की आपके जीवन में कोई खुशी न हो, हो सकता है की परिस्थितिया विपरीत हो और हो सकता है बहुत सी ऐसी समस्याये हो जिनके तत्काल हल दिखाई नहीं दे रहे हो . लेकिन फिर भी आप अपने आपको प्यार कर सकते है ..क्योंकि ये आपका जीवन है और अगर आप इसे प्यार नहीं करते तो कोई और आपको प्यार नहीं करेंगा .
एक बार जब आप खुद को प्रेम करना शुरू कर देंगे , दुसरो के लिए भी प्रेम का जन्म होना शुरू हो जायेंगा. आप दुसरो के लिए फिक्रमंद होवे , सहायक होवे, संवेदनशील होवे, और प्रेम करे. सिर्फ निश्चल प्रेम करे .और यकीन मानिए की दूसरों को प्रेम करना हमारे विचारों की तुलना में कहीं ज्यादा आसान है.
यह बहुत महत्वपूर्ण है की हम बिना शर्त प्रेम करे. किसी भी तरह की अपेक्षा नहीं रखे . और यही प्यार आपको परमेश्वर और आध्यात्मिकता के पथ पर ले जाएगा.
तो दोस्तों. कृपया अपने आपको और दूसरो को प्रेम करे और दूसरो से प्रेम पाये.
और हमेशा की तरह भगवान् तो आपसे प्रेम करते ही है .
प्रणाम !!
Thursday, August 26, 2010
HRUDAYAM
दोस्तों , अध्यात्म पर मेरा नया ब्लॉग प्रस्तुत है ..
http://hrudayam-theinnerjourney.blogspot.com/
आपसे निवेदन है की इसे जरुर FOLLOW करे ..
आपका
विजय
Monday, July 19, 2010
दिल और दिमाग.... HEART AND MIND ...
प्यारे दोस्तों, मुझे एक साधारण सी बात आपको बताना है कि, ये हम ही होते है , जो जीवन और भगवान की सुंदरता को अनदेखा करते है ...ये कार्य जाने अनजाने में होता है और ये होता है हमारे दिमाग के हस्तक्षेप के कारण !!! दिमाग का अपना तरीखा होता है जीवन जीने की प्रक्रिया को निर्धारित करने का ...और ये करता है अपने आसपास चीज़ों को देखकर और इनकी तुलना हमारे मस्तिष्क में मौजूद हमारे अतीत की छवियों और इनसे जुडी हुई धारणाओं के कारण !!! इस पूरी प्रक्रिया में जीवन खराब हो जाता है और हमारे जीवन को ख़राब करने के लिए दिमाग सहायता लेता है तर्कों की , कल्पनाओं की , धारणाओं की और यादों की .. ये सब कुछ मिलकर हमें रोक देते है की हम अपना वास्तविक जीवन को प्रेमपूर्वक देखे ... और भगवान के द्वारा बनाई गई प्रकृति का आनंद नहीं ले पाते है . तो बस अपने दिल का पालन करें, क्योंकि जब दिमाग रुक जाता है, तो जीवन शुरू होता है और जब जीवन बढ़ता है, तो प्यार होता है और जब प्यार किसी सुन्दर फूल की तरह खिलेंगा तो वो एक आनंद का क्षण होगा, खुशी का पल होंगा और आत्मा की सबसे अच्छी गूँज होंगी .. सबसे बढ़िया दिल की धड़कन होंगी .... और हमें लगता है की पृथ्वी पर सबसे सुन्दर घटना सिर्फ हमारा जीवन ही है .... और बहुत ही आश्चर्य की बात की आपके सभी सपनों को हकीकत में बदलते हुए आपका जीवन आपके साथ रहेंगा.... इसलिए सिर्फ अपने दिल की बातो का पालन करे ...जीवन आपकी राह देख रहा है दोस्तों ... आप सबको भगवान का आशीर्वाद मिले ... ..!!!
Dear Friends, let me tell you one simple thing that, it is only we, who overlook the beauty of life and GOD; just because of intervention of our mind. Mind has its own way of looking at the things around and than it shapes our life based on the images of our past experience and other mechanical inputs. In the process the life gets deteriorated and spoiled and get covered by logics, imaginations, perceptions and memories. All this put together stops us to see the real life and what it is for us in the whole scenario created by GOD. So simply Please follow your heart because when mind stops, life begins and when life grows, love happens and when love blossoms; than that will be the moment of bliss , the moment of joy and the most happening heartbeat of soul…..life is just than most happening thing on the earth ...and very surprisingly it will be your own life full of all the dreams converted into reality. So believe, follow and mind your HEART. HAPPY LIVING FRIENDS…….!!! GOD BLESS YOU …..!!!
Saturday, July 17, 2010
I , ME AND MYSELF !!!
There is no past and no future , whatever is there , it is only the present ...the moment .. the drop of life .. the bliss of soul...the blessings of GOD....the being ...the ME... and I am living every moment of my life with Music , books, and good friends like you... Thanks for being my friends. I cherish the memories...I will soon comeback after the shoulder enjury ...soon ..very soon !!! That's my promise to me and you all.
Saturday, March 13, 2010
दुखो का मूल कारण - अपेक्षा और उपेक्षा
प्रिय मित्रो ;
नमस्कार .
आज सोचा की दुखो का मूल कारण क्या है ,जिनके वजह से सारे मनुष्य जाती को दुःख भोगना पड़ता है ....तो ये समझ में आया की दुखो का मूल कारण सिर्फ और सिर्फ दो ही है - एक तो अपेक्षा और दूसरी उपेक्षा !!! सारे संसार में उत्पन्न हुए दुखो का यही दो कारण है या तो हम किसी से बहुत से विषय और वासनाओ की अपेक्षा कर लेते है और या तो हम किसी की उपेक्षा करते है ...और इसका उल्टा भी है जो दुःख देता है ....या तो कोई हमसे अपेक्षा कर लेता है या हम किसी की उपेक्षा कर लेते है ........ अपेक्षा सिर्फ आसक्ति और विषय -वासना और चाहत और needs के amplification की वजह से उत्पन्न होती है और जब हमारी चाहते पूरी नहीं हो पाती है तो हमें दुःख पहुँचता है ...चाहे वो फिर किसी भी form में हो ..और अपेक्षाए होना या उनकी आशाये रखना ,मानव मन की स्वाभाविक कमजोरी है ...लेकिन यदि हम ये सोच ले --किसी भी आशा के पहले या अपेक्षा के पहले की यदि ये आशाये या अपेक्षाए पूरी न हो तो हमें दुखी नहीं होना है बल्कि एक नयी ऊर्जा के साथ जीवन को गतिशील रखना है ...निरंतरता बनायीं रखनी है ....क्योंकि अक्सर सपने पूरे होते ही है .....भले ही थोड़ी देर लगे .... साथ ही हमें ये भी कोशिश करना होंगा की यदि कोई हमसे किसी भी प्रकार की अपेक्षा रखता है तो उसे यथासंभव पूरा करे... क्योंकि दूसरो के सपने जो आपसे जुड़े हुए है उन्हें यथासंभव पूरा करने की एक human responsibility हमारी भी बनती है ......
उपेक्षा भी इसी तरह दुःख देती है ...यदि कोई भी किसी भी कारण की वजह से हमारी उपेक्षा करता है तो हमें दुःख होता है ,इसी तरह से यदि हम किसी की उपेक्षा करते है तो वो दुखी होता है .... उपेक्षा directly प्रेम और मित्रता के भाव का अपमान है .....शब्दों का सही इस्तेमाल उपेक्षा को कटुता से बचा सकता है ....लेकिन जहाँ तक संभव हो सके किसी की उपेक्षा नहीं करना चाहिए .....
मानव जन्म इतना सुन्दर है की उसे दुखो से लाद कर दुखी नहीं करना चाहिए ....
प्रणाम !!!
नमस्कार .
आज सोचा की दुखो का मूल कारण क्या है ,जिनके वजह से सारे मनुष्य जाती को दुःख भोगना पड़ता है ....तो ये समझ में आया की दुखो का मूल कारण सिर्फ और सिर्फ दो ही है - एक तो अपेक्षा और दूसरी उपेक्षा !!! सारे संसार में उत्पन्न हुए दुखो का यही दो कारण है या तो हम किसी से बहुत से विषय और वासनाओ की अपेक्षा कर लेते है और या तो हम किसी की उपेक्षा करते है ...और इसका उल्टा भी है जो दुःख देता है ....या तो कोई हमसे अपेक्षा कर लेता है या हम किसी की उपेक्षा कर लेते है ........ अपेक्षा सिर्फ आसक्ति और विषय -वासना और चाहत और needs के amplification की वजह से उत्पन्न होती है और जब हमारी चाहते पूरी नहीं हो पाती है तो हमें दुःख पहुँचता है ...चाहे वो फिर किसी भी form में हो ..और अपेक्षाए होना या उनकी आशाये रखना ,मानव मन की स्वाभाविक कमजोरी है ...लेकिन यदि हम ये सोच ले --किसी भी आशा के पहले या अपेक्षा के पहले की यदि ये आशाये या अपेक्षाए पूरी न हो तो हमें दुखी नहीं होना है बल्कि एक नयी ऊर्जा के साथ जीवन को गतिशील रखना है ...निरंतरता बनायीं रखनी है ....क्योंकि अक्सर सपने पूरे होते ही है .....भले ही थोड़ी देर लगे .... साथ ही हमें ये भी कोशिश करना होंगा की यदि कोई हमसे किसी भी प्रकार की अपेक्षा रखता है तो उसे यथासंभव पूरा करे... क्योंकि दूसरो के सपने जो आपसे जुड़े हुए है उन्हें यथासंभव पूरा करने की एक human responsibility हमारी भी बनती है ......
उपेक्षा भी इसी तरह दुःख देती है ...यदि कोई भी किसी भी कारण की वजह से हमारी उपेक्षा करता है तो हमें दुःख होता है ,इसी तरह से यदि हम किसी की उपेक्षा करते है तो वो दुखी होता है .... उपेक्षा directly प्रेम और मित्रता के भाव का अपमान है .....शब्दों का सही इस्तेमाल उपेक्षा को कटुता से बचा सकता है ....लेकिन जहाँ तक संभव हो सके किसी की उपेक्षा नहीं करना चाहिए .....
मानव जन्म इतना सुन्दर है की उसे दुखो से लाद कर दुखी नहीं करना चाहिए ....
प्रणाम !!!
Saturday, January 16, 2010
माँ = ईश्वर
दोस्तों , इस दुनिया में ईश्वर का सच्चा स्वरुप सिर्फ माँ ही है ... इस संसार में किसी ने भी ईश्वर को मूर्त रूप में नहीं देखा है ,लेकिन सबने अपनी माँ को देखा है ..लेकिन ये न समझ सके की , संसार में ईश्वर मूर्त रूप में माँ में समाये हुए है .. ईश्वर हमारे लिए जो सारे कार्य करते है , वो सभी एक माँ करती है .. जन्म देना , पालना, पोसना, जीवन सीखना, पढ़ाना और लिखाना , बिमारी में देखभाल करना , संसार को समझने का ज्ञान देना !
हमारे शरीर को अपने दूध और रक्त से सींचना और एक छोटे से पौधे को एक वटवृक्ष की तरह बड़ा करना ...और अच्छी बातो से जीवन की समझदारी से मन को भरना ... ये सब कुछ एक माँ ही तो करती है .. लेकिन क्या हम अपनी माँ को भूल तो नहीं गए , इस दुनिया की झूठी RAT-RACE में ...
ईश्वर साक्षात् हमारे सम्मुख रहता है माँ के रूप में और हम संसार में ढूंढते रहते है .. माँ को प्रेम करिये ..क्योंकि उसका आदर और प्रेम ही ईश्वर की सच्ची पूजा अर्चना है .. दुनिया में सारे रिश्ते एक तरफ और माँ और बच्चो का रिश्ता एक तरफ .. क्योंकि माँ निस्वार्थ भाव से अपने बच्चो की सेवा में , उनकी भलाई में लगी रहती है ...
बीते दिनों मेरे पास एक CIRCULATING MAIL आया , आपके पास भी आया ही होंगा, किसी अज्ञात ने लिखा है और क्या खूब लिखा है , मैं उस अज्ञात को प्रणाम कर , उस मेल को नीचे RE-PRODUCE कर रहा हूँ ... बस आप सब से विनंती है की , सबको भले ही भूल जाए , पर माँ को न भूले....
माँ = ईश्वर
When you came into the world, she held you in her arms.
You thanked her by wailing like a banshee.
When you were 1 year old, she fed you and bathed you.
You thanked her by crying all night long.
When you were 2 years old, she taught you to walk.
You thanked her by running away when she called.
When you were 3 years old, she made all your meals with love.
You thanked her by tossing your plate on the floor.
When you were 4 years old, she gave you some crayons.
You thanked her by colouring the dining room table.
When you were 5 years old, she dressed you for the holidays.
You thanked her by plopping into the nearest pile of mud.
When you were 6 years old, she walked you to school.
You thanked her by screaming, "I'M NOT GOING!"
When you were 7 years old, she bought you a baseball.
You thanked her by throwing it through the next-door-neighbour’s window.
When you were 8 years old, she handed you an ice cream.
You thanked her by dripping it all over your lap.
When you were 9 years old, she paid for piano lessons.
You thanked her by never even bothering to practice.
When you were 10 years old, she drove you all day, from soccer to gymnastics to one birthday party after another.
You thanked her by jumping out of the car and never looking back.
When you were 11 years old, she took you and your friends to the movies.
You thanked her by asking to sit in a different row.
When you were 12 years old, she warned you not to watch certain TV shows.
You thanked her by waiting until she left the house.
When you were 13, she suggested a haircut that was becoming.
You thanked her by telling her she had no taste.
When you were 14, she paid for a month away at summer camp.
You thanked her by forgetting to write a single letter.
When you were 15, she came home from work, looking for a hug.
You thanked her by having your bedroom door locked.
When you were 16, she taught you how to driver her car.
You thanked her by taking it every chance you could.
When you were 17, she was expecting an important call.
You thanked her by being on the phone all night.
When you were 18, she cried at your high school graduation.
You thanked her by staying out partying until dawn.
When you were 19, she paid for your college tuition,drove you to campus, carried your bags.
You thanked her by saying good-bye outside the dorm so you wouldn't be embarrassed in front of your friends.
When you were 20, she asked whether you were seeing anyone.
You thanked her by saying, "It's none of your business."
When you were 21, she suggested certain careers for your future.
You thanked her by saying, "I don't want to be like you."
When you were 22, she hugged you at your college graduation.
You thanked her by asking whether she could pay for a trip to Europe.
When you were 23, she gave you furniture for your first apartment.
You thanked her by telling your friends it was ugly.
When you were 24, she met your fiancé and asked about your plans for the future.
You thanked her by glaring and growling, "Muuhh-ther, please!"
When you were 25, she helped to pay for your wedding, and she cried and told
you how deeply she loved you.
You thanked her by moving halfway across the country.
When you were 30, she called with some advice on the baby.
You thanked her by telling her, "Things are different now."
When you were 40, she called to remind you of a relative's birthday.
You thanked her by saying you were "really busy right now."
When you were 50, she fell ill and needed you to take care of her.
You thanked her by reading about the burden parents become to their children.
And then, one day, she quietly died. And everything you never did came
crashing down like thunder.
Let us take a moment of the time just to pay tribute/show appreciation to
the person called MOM though some may not say it openly to their mother.
There's no substitute for her. Though at times she may not be the best of friends, may not agree to our thoughts, she is still your mother!!!
She will be there for you...to listen to your woes, your braggings, your
Frustrations, etc. Ask yourself.....have you put aside enough time for her, to listen to her "blues" of working in the kitchen, her tiredness???
Once gone, only fond memories of the past and also regrets will be left.
*DON'T TAKE FOR GRANTED THE THINGS CLOSEST TO YOUR HEART. CLING TO THEM AS YOU WOULD YOUR LIFE, FOR WITHOUT THEM, LIFE IS MEANINGLESS*
If she's still around,
never forget to love Her more than ever.
And if she's not,
remember Her unconditional love.
Always remember to love YOUR MOTHER,
because you only have one mother in your lifetime.
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