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Friday, June 20, 2014

जीवन में बोलने का महत्व ...!!!

मेरे प्रिय आत्मीय मित्रो , 
नमस्कार 

आपका जीवन शुभ हो इसी मंगलकामना के साथ मैं एक बात कहना चाहता हूँ . 

हमारे शरीर की एक मात्र सम्पूर्ण अभिव्यक्ति सिर्फ हमारी जीभ ही है . और प्रभु ने इसे लचीला बनाया है ताकि हम सुगमता से इसका उपयोग कर सके . 

लेकिन अक्सर ये होता है कि क्रोध की अधिकता और समय तथ अपने आसपास के मित्रो / व्यक्तियों के असर में हम अपने शरीर के सबसे महत्वपूर्ण  अंग का दुरूपयोग करते है और सिर्फ इसी की वज़ह से हमारे जीवन के संबंध बिगड़ जाते है .

आईये हम प्रण करे कि अपने जीवन को और सहज और प्रेमपूर्ण बनाए और अपनी बातो से किसी को दुःख न पहुंचाए क्योंकि किसी को भी दुःख पहुंचाने की कोशिश में सबसे पहले खुद को ही दुःख पहुँचता है . 

आपका जीवन शुभ हो !
प्रणाम 
आपका अपना 
विजय 


Sunday, January 5, 2014

जीवन का रिश्ता

मेरे आत्मन,
नमस्कार .

हम सभी अपने जीवन को जीते हुए अक्सर एक छोटी सी बात को भूल जाते है और वो बात होती है जीवन का रिश्ता - जीवन में बने हुए रिश्तो से !

विवेकाननद के इस सूक्ति में गहरा रहस्य छुपा हुआ है !

आप सभी को एक बेहतर जीवन की ढेर सारी शुभकामनाये !
आपका अपना
विजय


Saturday, August 24, 2013

शिक्षा

प्रत्‍येक मनुष्‍य जिससे मैं मिलता हूं किसी न किसी रीत में / व्यवहार में / गुण में / ज़िन्दगी जीने के ढंग में / कला में / मुझसे श्रेष्‍ठ होता है इसलिए मैं उससे कुछ शिक्षा लेता हूं !

Sunday, June 9, 2013

.सोचो ; साथ क्या ले जाओंगे यारो

प्रिय दोस्तों ,
नमस्कार ...कल मैंने पुछा था ....सोचो ; साथ क्या ले जाओंगे यारो .....

उसका सीधा सा जवाब है ... हम कुछ भी साथ लेकर नहीं आये थे ... लेकिन हाँ, जाते समय , बहुत कुछ साथ जायेंगा , हमारा भलापन, हमारी अच्छाई , हमारा प्रेम , हमारी दया , हमारी क्षमा , जीवन के वो पल , जिनमे हमने इस दुनिया के लिए सोचा , और दुसरो के लिए निस्वार्थ भाव से कुछ किया .... बस यही है जो साथ जायेंगा , बहुत समय पहले , शायद एक साल पहले मैंने एक पोस्ट लगाई थी :::  when death comes there will be only two questions ....... first - did you love and second - did you give ...  बस यही सार है जीवन का ..... प्रणाम ...

सदा आपका 

विजय 

Tuesday, June 4, 2013

सत्य

प्रिय आत्मन , 
नमस्कार .
मैं कुछ देर पहले ओशो के पत्र पढ़ रहा था . जो की उन्होंने अपने सन्यासियों को लिखा था . एक पत्र था जो उन्होंने अपने मित्र और सन्यासी श्री कोठारी जी को लिखा था . 
उसमे उन्होंने कहा था " हम चाहना ही नहीं जानते , वरना सत्य कितना निकट है " ये वाक्य मेरे मन में समां गया . कितनी सच्ची बात है . हा सच में ही नहीं जानते की हमें क्या चाहिए . या हमारी वास्तव में चाहत क्या है . नहीं तो ज्ञान से हमारी दूरी कितनी है . बिलकुल भी नहीं . 
तो सत्य यही है की हम ये जान ले की हमें क्या पाना है , हमारी चाहत क्या है . इजी फिर उसके बाद सारी तलाश खत्म हो जायेंगी . सब कुछ हमारे सामने दर्पण के तरह होंगा . तो मित्रो , आईये उस सत्य की खोज करे. और अपने आपको उसमे डुबो ले. 
प्रणाम आपका ही विजय

Thursday, July 19, 2012

अनुभूतियाँ

मेरे प्रिय मित्रों / आत्मन

हम अक्सर अपने कर्मो को करने के चक्कर में कुछ गलत कर्म भी कर लेते है और कुछ अनुचित शब्दों का प्रयोग भी कर लेते है . लेकिन जैसे कि माया अन्जेलो ने कहा है ,कि , लोग भले ही  हमारे कर्म और हमारे शब्द भूल जाए , लेकिन कोई ये नहीं भूलता कि , हमने उन्हें कैसी अनुभूतियाँ दी .

आज , मैं आप सबसे निवेदन करता हूँ कि अपने शब्दों को और अपने कर्मो को संवेदनशील बनाए रखे. क्योंकि , वक्त तो गुजरता ही रहता है ...और लोग हर अनुभूति को संजोये रखे रहते है .. अच्छा करिये अच्छा ही होंगा .. प्रेम पाने के लिये सिर्फ प्रेम ही करे..

आप सभी  का धन्यवाद.
आप का जीवन शुभ हो
असीम प्रेम से भरे आलिंगनो के साथ
आपका
विजय