पिछले ३० सालो से एक बन्दे को समझने की कोशिश कर रहा हूँ .पर लगता है कि इस जन्म में उसे समझ नहीं पाऊंगा ! वो है कृष्ण !!!
कभी वो गोकुल का नटखट बालक है तो कभी वो महाभारत का निर्मम war moderator !
कभी वो राधा का निश्चल प्रेमी है तो कभी वो एक चालबाज राजनीतिक !
कभी वो मित्रो का मित्र है तो कभी वो दुश्मनों का दुश्मन !
कभी वो मानव है तो कभी भगवान !
वो अपने आप में एक रहस्यदर्शी है . उसे समझना असंभव है !!!
पर हाँ ,जब मैं उसका भक्त बनकर उसकी शरण में जाता हूँ तो सारे द्वार खुल जाते है और फिर कुछ भी समझने को बाकी नहीं रहता ! वो मेरे और मैं उनका !!!
कृष्णं वन्दे जगतगुरु !!!
कृष्ण का ये स्केच विजय बाबा ने बनाया है : एक भक्त की अपने प्रभु को भेंट !!
दोस्तों , आधी दुनिया की चिंता ये है कि क्या खाए - क्योंकि उनके पास बहुत पैसा है और उनके पास खाने की choices भी बहुत है . और ठीक उसी समय या फिर at any point of given time , बाकी की बची हुई आधी दुनिया की भी यही चिंता है कि क्या खाए - क्योंकि उनके पास खाने के लिए कम से कम खाना भी नहीं है , पैसे नहीं है ,इसलिए खाने की कोई choices भी नहीं है .
ये आदिकाल से चला आ रहा एक यक्ष प्रश्न है. आईये संकल्प करे कि जो कुछ भी हमसे हो सके - हम इस दुनिया में भूख को मिटाने में अपना योगदान करे.
दोस्तों कम से कम एक मुट्ठी खाना भी अगर किसी को खिला सको तो समझो जी लिया . अन्नदान करिए , इससे बेहतर ख़ुशी का रास्ता कोई और नहीं है !
आपका अपना
विजय
मेरे आत्मीय मित्रो ,
नमस्कार
कभी इस पर भी सोचा है कि तुम्हारा खुद का क्या है जो इतना अभिमान है .
जीवन से लेकर मरण तक सब कुछ तो दुसरे का ही है . तब क्यों जीवन को इस तरह जीना कि वो खुद के लिए भी कष्टदायक हो जाए और दुसरो के लिए भी तकलीफदेह !
आईये , ईश्वर को याद करके उन सभी का आभार माने और धन्यवाद दे , जिन्होंने हमारे जीवन को संवारा , बेहतर बनाया !
ये जीवन आपका है . इसे खुशनुमा सिर्फ आप ही बना सकते है !
प्रणाम
सदा ही आपका
विजय
मेरे प्रिय आत्मीय मित्रो ,
नमस्कार
आपका जीवन शुभ हो इसी मंगलकामना के साथ मैं एक बात कहना चाहता हूँ .
हमारे शरीर की एक मात्र सम्पूर्ण अभिव्यक्ति सिर्फ हमारी जीभ ही है . और प्रभु ने इसे लचीला बनाया है ताकि हम सुगमता से इसका उपयोग कर सके .
लेकिन अक्सर ये होता है कि क्रोध की अधिकता और समय तथ अपने आसपास के मित्रो / व्यक्तियों के असर में हम अपने शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंग का दुरूपयोग करते है और सिर्फ इसी की वज़ह से हमारे जीवन के संबंध बिगड़ जाते है .
आईये हम प्रण करे कि अपने जीवन को और सहज और प्रेमपूर्ण बनाए और अपनी बातो से किसी को दुःख न पहुंचाए क्योंकि किसी को भी दुःख पहुंचाने की कोशिश में सबसे पहले खुद को ही दुःख पहुँचता है .
आपका जीवन शुभ हो !
प्रणाम
आपका अपना
विजय
मेरे आत्मन,
नमस्कार .
हम सभी
अपने जीवन को जीते हुए अक्सर एक छोटी सी बात को भूल जाते है और वो बात होती
है जीवन का रिश्ता - जीवन में बने हुए रिश्तो से !
विवेकाननद के इस सूक्ति में गहरा रहस्य छुपा हुआ है !
आप सभी को एक बेहतर जीवन की ढेर सारी शुभकामनाये !
आपका अपना
विजय