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Tuesday, March 7, 2017

प्रार्थना

और अंत में जब प्रार्थना करते हुए आँखों में आंसू आये , प्रभु के लिए ... तब ही सच्ची पूजा और प्रार्थना ....
बस उस क्षण तक पहुँचना ही जीवन का ध्येय है ... यही सच्चा समर्पण है .
जीवन के प्रति , प्रभु के प्रति , स्वंय के प्रति.
अस्तु
प्रणाम
आपका अपना
विजय

Thursday, August 25, 2016

कृष्ण

कृष्ण न होते तो न मैं धर्म से जुड़ पाता और न ही अध्यात्म से !!
कृष्ण, बुद्ध और जीसस इन तीनो का मेरे जीवन में परम स्थान है..
प्रणाम भगवन
विजय

Saturday, July 25, 2015

क्षमापना

शुभ संध्या दोस्तों . 

बहुत दिन हुए . आपसे कोई बात नहीं कर पाया . जीवन बहुत कठिन है . जैसा हम सोचते है , वैसा कुछ हो नहीं पाता है और हर पल एक नए चैलेंज के साथ हमारे सामने खड़ा हो जाता है . और जीवन की इसी आपाधापी में हमसे कुछ गलतियां भी हो जाती है . और अक्सर क्रोध हमारी जिव्हा और हमारे मन मस्तिष्क पर सवार हो जाता है . और इसी कारण हम जाने अनजाने में ही दुसरो को दुःख पहुंचाते है . जिनमे से अक्सर बहुत सारे व्यक्ति अपने ही होते है . और ये भी होता है की उनके चले जाने के बाद [ जीवित और न रहने पर –दोनों ही अवस्था में ] हमें बहुत दुःख होता है. इसलिए आज मैं आपको एक छोटी सी देशना देता हूँ . 

आईये आज मैं आपसे कुछ कहता हूँ . आप ये कार्य करिए . मैंने एक पत्र तैयार किया है . इसे आप किसी भी तरह से अपने सारे दोस्तों / रिश्तेदारों और जानने वाले ,जिससे भी आप मिले हो ; सभी को एक बार भेज दे. चाहे लिख कर भेजे / ईमेल मे भेजे / लेकिन भेजे जरुर . 

देखिये फिर क्या होता है . एक ऐसा जादू जो की आपने सभी रिश्ते ठीक कर देंगा . 

सच्ची ! 
एक बार कोशिश करे ! 

आपका अपना 
विजय 

**********

मान्यवर/ मान्यवरा

क्षमापना सारी गलतियों व अपराधों को धोने का अमोघ उपाय है. मनुष्य की श्रेष्टथा इसी में है कि वह अपनी भूलो को स्वीकार करे. जो अपराध को स्वीकार नही करता वह अपराध से कभी मुक्त भी नही हो पाता . 

जीवन पथ इतना लंबा और अटपटा है कि उसे यदि क्षमापना से बार बार बुहारा न जाए तो वह कुडादान बन जायेगा. 
दुनिया में सारे धर्मग्रंथो और उपदेशों का सार है कि क्षमा को छोड़कर हम कितना भी चले कहीं भी नही पहुँच पाएंगे. 

याथार्थ तो यही है कि आत्म उत्कर्ष के किशी भी शिखर पर कोई कभी पहुँचेंगा तो वह क्षमा के साथ ही पहुँचेंगा . 

आईये , क्षमा द्वार से प्रवेश कर , मनो मालिन्य , राग,  द्वेष और अहंकार से मुक्त हो.

मेरे द्वारा किये गए किसी भी गलती के लिए मैं क्षमापार्थी हूँ  . कृपया मुझे ह्रदय से क्षमा करिए !

आपका अपना 
क्षमा प्राथी

Saturday, October 4, 2014

||| कृष्ण भक्त हैं, और भगवान भी हैं |||


कृष्ण भक्त हैं, और भगवान भी हैं। और जो भी भक्ति में प्रवेश करेगा, वह भक्त से शुरू होगा और भगवान पर पूरा हो जाएगा
इस संबंध में थोड़ी सी बात पीछे हुई है, लेकिन हमें समझ में नहीं आती है, इसलिए फिर दूसरी तरह से लौट आती है। मैंने प्रार्थना के संबंध में जो कहा, वह थोड़ा खयाल में लेंगे तो समझ में आ जाएगा। जैसा मैंने कहा कि प्रेयर नहीं, प्रेयरफुलनेस। ऐसा भक्ति का मतलब किसी की भक्ति नहीं होती, भक्ति का मतलब है, डिवोशनल एटिटयूड। भक्ति का मतलब है, भक्त का भाव। उसके लिए भगवान होना जरूरी नहीं है। भक्ति भगवान के बिना हो सकती है, ऐसा नहीं, भक्ति के कारण भगवान दिखाई पड़ना शुरू हुआ है। जिन लोगों का हृदय भक्ति से भरा है, उन्हें यह जगत भगवान हो जाता है। जिनका हृदय भक्ति से नहीं भरा है, वे पूछते हैं--भगवान कहां है? वे पूछेंगे। और उन्हें बताया नहीं जा सकता, क्योंकि वह भक्त के हृदय से देखा गया जगत है। वह भक्त के मार्ग से देखा गया जगत है।
जगत भगवान नहीं है, भक्तिपूर्ण ह्रदय जगत को भगवान की तरह देख पाता है। जगत पत्थर भी नहीं है, पत्थर की तरह हृदय जगत को पत्थर की तरह देख पाता है। जगत में जो हम देख रहे हैं, वह प्रोजेक्शन है, वह हमारे भीतर जो है उसका प्रतिफलन है। जगत में वही दिखाई पड़ता है, जो हम हैं। अगर भीतर भक्ति का भाव गहरा हुआ, तो जगत भगवान हो जाता है। फिर ऐसा नहीं है कि भगवान कहीं बैठा होता है किसी मंदिर में; फिर जो होता है वह भगवान ही होता है।
कृष्ण भक्त हैं, और भगवान भी हैं। और जो भी भक्ति में प्रवेश करेगा, वह भक्त से शुरू होगा और भगवान पर पूरा हो जाएगा। एक दिन जब वह बाहर भगवान को देख लेगा, तो उसने खुद ऐसा क्या कसूर किया है कि उसे भीतर भगवान नहीं दिखाई पड़ेंगे! भक्त शुरू होता है भक्त की तरह, पूरा होता है भगवान की तरह। यात्रा शुरू करता है जगत को देखने की देखता है उसे जो जगत में है। भक्तिपूर्ण हृदय से, डिवोशनल माइंड से, प्रेयरफुल, भक्तिपूर्ण, भावपूर्ण, प्रार्थनापूर्ण मन से देखता है जगत को। फिर धीरे-धीरे अपने को भी उसी तरह देख पाता है, कोई उपाय नहीं रह जाता। फिर ऐसा भी हो जाता है, जैसा रामकृष्ण को एक बार हुआ। बहुत मजे की घटना है।
रामकृष्ण को एक मंदिर में पुरोहित की तरह रखा गया था, दक्षिणेशवर में। बहुत सस्ती नौकरी थी। शायद सोलह रूपये महीने की नौकरी थी। पुजारी की तरह रखा था उनको। लेकिन दस-पांच दिन में ही तकलीफ शुरू हो गई, क्योंकि ट्रस्टियों को खबर मिली कि यह आदमी तो ठीक नहीं मालूम होता। भगवान को जो भोग लगाता है, पहले खुद चख लेता है। और भगवान पर जो फूल चढ़ाता है, सूंघ लेता है। तो छिपकर ट्रस्टियों ने आकर देखा मंदिर में कि मामला क्या है? देखा कि बड़े भाव से रामकृष्ण नाचते हुए भीतर आए, भोग पहले खुद को लगाया, फिर भगवान को लगाया; फूल पहले सूंघे, फिर भगवान को सुंघाए। ट्रस्टियों ने उनको पकड़ लिया और कहा, यह क्या कर रहे हो? यह कोई ढंग है भक्ति का? रामकृष्ण ने कहा, भक्ति का ढंग होता है, यह कभी सुना नहीं। भक्त देखे हैं, भक्त सुने हैं, भक्ति का कोई ढंग होता है? कोई ढांचा, कोई डिसिप्लिन होती है? उन्होंने कहा, निकाल बाहर करेंगे! कहीं सूंघा हुआ फूल भगवान को चढ़ाया जा सकता है? रामकृष्ण ने कहा, बिना सूंघे चढ़ा कैसे सकता हूं? पता नहीं सुगंध हो भी या न हो! ट्रस्टियों ने कहा, बिना भगवान को प्रसाद लगाए तुम खुद कैसे खा लेते हो? रामकृष्ण ने कहा, मेरी मां मुझे खिलाती थी तो पहले चख लेती थी। मैं बिना चखे नहीं चढ़ा सकता। नौकरी तुम सम्हालो। अन्यथा मुझे यहां रखना है, तो मैं चखूगां, फिर चढ़ाऊंगा। पता नहीं खाने योग्य हो भी या न हो!
अब यह जो आदमी है, यह आदमी बाहर ही भगवान को कैसे देख पाएगा? बहुत जल्दी वह वक्त आ जाएगा, यह कहेगा कि भीतर भी भगवान है। तो भक्त से तो शुरु होती है यात्रा, भगवान पर पूरी होती है। ऐसा नहीं है कि बाहर कहीं किसी भगवान पर पूरी होती है, अंततः सारी दुनिया की यात्रा करके हम अपने पर लौट आते हैं और पाते हैं: जिसे हम खोजने गए थे वह घर में बैठा हुआ है।
कृष्ण दोनों हैं। तुम दोनों हो, सभी दोनों हैं। लेकिन भगवान से शुरू नहीं कर सकते हो तुम। भक्त से ही शुरु करना पड़ेगा। क्योंकि अगर तुमने यह कहा कि मैं भगवान हूं, तो खतरा है। ऐसे कई लोग खतरा पैदा करते हैं, जो भगवान की घोषणा तो कर देते हैं, तब ऐसे लोग अहंकेंद्रित होकर, इगोसेट्रिक होकर दूसरों को भक्त बनाने की कोशिश में लग जाते हैं। क्योंकि उनके भगवान के लिए भक्तों की जरूरत है। पर वे दूसरें में भगवान नहीं देख पाते। अपने में भगवान देखते हैं, दूसरे में भक्त देखते हैं। ऐसे गुरुडम के बहुत घेरे हैं सारी दुनिया में। यात्रा शुरु करनी पड़ेगी भक्ति से।
अब कृष्ण को भगवान माना जा सकता है, क्योंकि यह आदमी घोड़े तक की भक्ति कर सकता है। सांझ का जब घोड़े थक जाते हैं तो उन्हें ले जाता है नदी पर स्नान कराने। उनको नहलाता है, उनको खुरे से साफ करता है। यह आदमी भगवान होने की हैसियत रखता है। क्योंकि घोड़े को भी भगवान की तरह स्नान करवा सकता है। इस आदमी से डर नहीं है, इससे खतरा नहीं है। यह अगर भगवान की अकड़ वाला आदमी होता तो सारथी की जगह बैठ नहीं सकता। अर्जुन से कहता, बैठो नीचे, बैठने दो ऊपर! रहा मैं भगवान, तुम हो भक्त! भगवान बैठेंगे रथ में, भक्त चलाएगा।
जो अपने को भगवान घोषित करते हैं, जरा उन्हें तख्त के नीचे बिठाल कर आप तख्त पर बैठ कर देखिए, तब पता चलेगा!
भक्त से शुरु होगी यात्रा, भगवान पर पूरी होती है।
-ओशो

||| भक्ति की महिमा |||


भक्ति बीज पलटै नहीं, जो जुग जाय अनन्त |
ऊँच नीच घर अवतरै, होय सन्त का सन्त ||
की हुई भक्ति के बीज निष्फल नहीं होते चाहे अनंतो युग बीत जाये | भक्तिमान जीव सन्त का सन्त ही रहता है चाहे वह ऊँच - नीच माने गये किसी भी वर्ण - जाती में जन्म ले |
भक्ति पदारथ तब मिलै, तब गुरु होय सहाय |
प्रेम प्रीति की भक्ति जो, पूरण भाग मिलाय ||
भक्तिरूपी अमोलक वस्तु तब मिलती है जब यथार्थ सतगुरु मिलें और उनका उपदेश प्राप्त हो | जो प्रेम - प्रीति से पूर्ण भक्ति है, वह पुरुषार्थरुपी पूर्ण भाग्योदय से मिलती है |
भक्ति जो सीढ़ी मुक्ति की, चढ़ै भक्त हरषाय |
और न कोई चढ़ि सकै, निज मन समझो आय ||
भक्ति मुक्ति की सीडी है, इसलिए भक्तजन खुशी - खुशी उसपर चदते हैं | आकर अपने मन में समझो, दूसरा कोई इस भक्ति सीडी पर नहीं चढ़ सकता | (सत्य की खोज ही भक्ति है)
भक्ति बिन नहिं निस्तरे, लाख करे जो कोय |
शब्द सनेही होय रहे, घर को पहुँचे सोय ||
कोई भक्ति को बिना मुक्ति नहीं पा सकता चाहे लाखो लाखो यत्न कर ले | जो गुरु के निर्णय वचनों का प्रेमी होता है, वही सत्संग द्वरा अपनी स्थिति को प्राप्त करता है |
भक्ति गेंद चौगान की, भावै कोइ लै लाय |
कहैं कबीर कुछ भेद नहिं, कहाँ रंक कहँ राय ||
भक्ति तो मैदान में गेंद के समान सार्वजनिक है, जिसे अच्छी लगे, ले जाये | गुरु कबीर जी कहते हैं कि, इसमें धनी - गरीब, ऊँच - नीच का भेदभाव नहीं है |
कबीर गुरु की भक्ति बिन, अधिक जीवन संसार |
धुँवा का सा धौरहरा, बिनसत लगै न बार ||
कबीर जी कहते हैं कि बिना गुरु भक्ति संसार में जीना धिक्कार है | यह माया तो धुएं के महल के समान है, इसके खतम होने में समय नहीं लगता |
जब लग नाता जाति का, तब लग भक्ति न होय |
नाता तोड़े गुरु बजै, भक्त कहावै सोय ||
जब तक जाति - भांति का अभिमान है तब तक कोई भक्ति नहीं कर सकता | सब अहंकार को त्याग कर गुरु की सेवा करने से गुरु - भक्त कहला सकता है |
भाव बिना नहिं भक्ति जग, भक्ति बिना नहीं भाव |
भक्ति भाव एक रूप हैं, दोऊ एक सुभाव ||
भाव (प्रेम) बिना भक्ति नहीं होती, भक्ति बिना भाव (प्रेम) नहीं होते | भाव और भक्ति एक ही रूप के दो नाम हैं, क्योंकि दोनों का स्वभाव एक ही है |
जाति बरन कुल खोय के, भक्ति करै चितलाय |
कहैं कबीर सतगुरु मिलै, आवागमन नशाय ||
जाति, कुल और वर्ण का अभिमान मिटाकर एवं मन लगाकर भक्ति करे | यथार्थ सतगुरु के मिलने पर आवागमन का दुःख अवश्य मिटेगा |
कामी क्रोधी लालची, इतने भक्ति न होय |
भक्ति करे कोई सुरमा, जाति बरन कुल खोय ||
कामी, क्रोधी और लालची लोगो से भक्ति नहीं हो सकती | जाति, वर्ण और कुल का मद मिटाकर, भक्ति तो कोई शूरवीर करता है |

Thursday, September 18, 2014

कृष्णं वन्दे जगतगुरु !!!


पिछले ३० सालो से एक बन्दे को समझने की कोशिश कर रहा हूँ .पर लगता है कि इस जन्म में उसे समझ नहीं पाऊंगा ! वो है कृष्ण !!!

कभी वो गोकुल का नटखट बालक है तो कभी वो महाभारत का निर्मम war moderator !
कभी वो राधा का निश्चल प्रेमी है तो कभी वो एक चालबाज राजनीतिक !
कभी वो मित्रो का मित्र है तो कभी वो दुश्मनों का दुश्मन !
कभी वो मानव है तो कभी भगवान !

वो अपने आप में एक रहस्यदर्शी है . उसे समझना असंभव है !!!

पर हाँ ,जब मैं उसका भक्त बनकर उसकी शरण में जाता हूँ तो सारे द्वार खुल जाते है और फिर कुछ भी समझने को बाकी नहीं रहता ! वो मेरे और मैं उनका !!!

कृष्णं वन्दे जगतगुरु !!!

कृष्ण का ये स्केच विजय बाबा ने बनाया है : एक भक्त की अपने प्रभु को भेंट !!





Wednesday, September 17, 2014

अन्नदान करिए !!!


दोस्तों , आधी दुनिया की चिंता ये है कि क्या खाए - क्योंकि उनके पास बहुत पैसा है और उनके पास खाने की choices  भी बहुत है . और ठीक उसी समय या फिर at any point of given time , बाकी की बची हुई आधी दुनिया की भी यही चिंता है कि क्या खाए - क्योंकि उनके पास खाने के लिए कम से कम खाना भी नहीं है , पैसे नहीं है ,इसलिए खाने की कोई choices भी नहीं है .
ये आदिकाल से चला आ रहा एक यक्ष प्रश्न है. आईये संकल्प करे कि जो कुछ भी हमसे हो सके - हम इस दुनिया में भूख को मिटाने में अपना योगदान करे. 

दोस्तों कम से कम एक मुट्ठी खाना भी अगर किसी को खिला सको तो समझो जी लिया . अन्नदान  करिए , इससे बेहतर ख़ुशी का रास्ता कोई और नहीं है !

आपका अपना 
विजय


Friday, September 5, 2014

शिक्षक दिवस

मेरे आत्मीय मित्रो 
नमस्कार 
आज शिक्षक दिवस है . हम सभी किसी न किसी गुरु को अपनाते है . उनकी शरण में जाते है. पर ये हमें कभी भी न भूलना चाहिए कि माता - पिता के बाद शिक्षक ही प्रथम गुरु है . आईये आज इस पावन दिन पर उन्हें ये बताये कि हमारी ज़िन्दगी में उनका कितना बड़ा योगदान है .
आप सभी को शिक्षक दिवस की ढेर सारी शुभकामनाये .
प्रणाम 
आपका अपना 
विजय



Saturday, July 12, 2014

गुरु पूर्णिमा

मित्रो , 
आप सभी को मेरे प्रणाम . 

जीवन में गुरु का महत्व माता -पिता के सामान ही है . और एक ही जीवन में हम एक अथवा अनेक गुरुजनों से मिलते है और ज्ञान ग्रहण करते है . जीवन को एक सही दिशा देने में गुरु का ही सर्वोत्तम स्थान है . इस लिए तो कहा गया है कि : 

||| गुरु ब्रम्हा गुरु विष्णु गुरु देव महेश्वर, गुरु साक्षात् परब्रह्म, तैस्मय: श्री गुरुवे नमः |||

और ये भी बात उतनी ही सत्य है कि :

                    ईश कृपा बिन गुरु नहीं, गुरु बिना नहीं ज्ञान ।
                    ज्ञान बिना आत्मा नहीं, गावहिं वेद पुरान ॥

आईये गुरु पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर हम अपने अपने गुरुजनों को याद करे और उन्हें अपने प्रणाम अर्पित करे. 

और हां , आप सभी तो मेरे गुरु है ही , मैं कुछ न कुछ आप सभी से सीखते रहता ही हूँ. इसलिए आप सभी को मेरे प्रणाम ! 

आपका जीवन शुभ हो . 
आपका अपना 
विजय 



Thursday, June 26, 2014

जीवन !!!

मेरे आत्मीय मित्रो , 
नमस्कार 

कभी इस पर भी सोचा है कि तुम्हारा खुद का क्या है जो इतना अभिमान है . 

जीवन से लेकर मरण तक सब कुछ तो दुसरे का ही है . तब क्यों जीवन को इस तरह जीना कि वो खुद के लिए भी कष्टदायक हो जाए और दुसरो के लिए भी तकलीफदेह ! 

आईये , ईश्वर को याद करके उन सभी का आभार माने  और धन्यवाद दे , जिन्होंने हमारे जीवन को संवारा , बेहतर बनाया ! 

ये जीवन आपका है . इसे खुशनुमा सिर्फ आप ही बना सकते है !

प्रणाम 
सदा ही आपका 
विजय 


Friday, June 20, 2014

जीवन में बोलने का महत्व ...!!!

मेरे प्रिय आत्मीय मित्रो , 
नमस्कार 

आपका जीवन शुभ हो इसी मंगलकामना के साथ मैं एक बात कहना चाहता हूँ . 

हमारे शरीर की एक मात्र सम्पूर्ण अभिव्यक्ति सिर्फ हमारी जीभ ही है . और प्रभु ने इसे लचीला बनाया है ताकि हम सुगमता से इसका उपयोग कर सके . 

लेकिन अक्सर ये होता है कि क्रोध की अधिकता और समय तथ अपने आसपास के मित्रो / व्यक्तियों के असर में हम अपने शरीर के सबसे महत्वपूर्ण  अंग का दुरूपयोग करते है और सिर्फ इसी की वज़ह से हमारे जीवन के संबंध बिगड़ जाते है .

आईये हम प्रण करे कि अपने जीवन को और सहज और प्रेमपूर्ण बनाए और अपनी बातो से किसी को दुःख न पहुंचाए क्योंकि किसी को भी दुःख पहुंचाने की कोशिश में सबसे पहले खुद को ही दुःख पहुँचता है . 

आपका जीवन शुभ हो !
प्रणाम 
आपका अपना 
विजय