Thursday, June 26, 2014

जीवन !!!

मेरे आत्मीय मित्रो , 
नमस्कार 

कभी इस पर भी सोचा है कि तुम्हारा खुद का क्या है जो इतना अभिमान है . 

जीवन से लेकर मरण तक सब कुछ तो दुसरे का ही है . तब क्यों जीवन को इस तरह जीना कि वो खुद के लिए भी कष्टदायक हो जाए और दुसरो के लिए भी तकलीफदेह ! 

आईये , ईश्वर को याद करके उन सभी का आभार माने  और धन्यवाद दे , जिन्होंने हमारे जीवन को संवारा , बेहतर बनाया ! 

ये जीवन आपका है . इसे खुशनुमा सिर्फ आप ही बना सकते है !

प्रणाम 
सदा ही आपका 
विजय 


Friday, June 20, 2014

जीवन में बोलने का महत्व ...!!!

मेरे प्रिय आत्मीय मित्रो , 
नमस्कार 

आपका जीवन शुभ हो इसी मंगलकामना के साथ मैं एक बात कहना चाहता हूँ . 

हमारे शरीर की एक मात्र सम्पूर्ण अभिव्यक्ति सिर्फ हमारी जीभ ही है . और प्रभु ने इसे लचीला बनाया है ताकि हम सुगमता से इसका उपयोग कर सके . 

लेकिन अक्सर ये होता है कि क्रोध की अधिकता और समय तथ अपने आसपास के मित्रो / व्यक्तियों के असर में हम अपने शरीर के सबसे महत्वपूर्ण  अंग का दुरूपयोग करते है और सिर्फ इसी की वज़ह से हमारे जीवन के संबंध बिगड़ जाते है .

आईये हम प्रण करे कि अपने जीवन को और सहज और प्रेमपूर्ण बनाए और अपनी बातो से किसी को दुःख न पहुंचाए क्योंकि किसी को भी दुःख पहुंचाने की कोशिश में सबसे पहले खुद को ही दुःख पहुँचता है . 

आपका जीवन शुभ हो !
प्रणाम 
आपका अपना 
विजय 


Saturday, May 17, 2014

धोखा देना

मेरे आत्मीय मित्रो , 
आईये हम कोशिश करे कि इस धोखेबाजी से बचे . 
धोखा देना , वो चाहे खुद को हो या दुसरो को . हमेशा ही दुःख देना वाला ही होता  है .
आपका जीवन आपका है , इसे सँवारे , बेहतर बनाए , खुश रहे और अपने आपको जीवंत बनाए रखे . 
यही मेरी मंगलकामना है . 
प्रणाम 
आपका 
विजय 



जीवन कैसे जिया जाए !


मेरे आत्मीय मित्रो , 

हम हमेशा से जीवन को कैसे जिया जाए इस बारे में पढ़ते -सुनते रहते है . कई बार हम अमल करते है और कई बार बस अनसुना कर देते है . 
मेरा मानना है कि जीवन को अगर अर्थपूर्ण ढंग से अगर जिया जाए तो जीवन को जीने का आनंद अधिक हो जाता है . 
आईये जीवन को बेहतर बनाए . 
प्रणाम 
आपका 
विजय 





Thursday, April 17, 2014

The Secret In Hindi Full Movie High Definition)

मेरे आत्मीय मित्रो ,
नमस्कार आपके लिए मैं सीक्रेट का हिंदी वर्शन यहाँ लगा रहा हूँ . जरुर देखे .
जीवन को देखने का नज़रिया बदलेंगा
आपका
विजय



Tuesday, April 15, 2014

ज़िन्दगी - एक नयी शुरुवात

मेरे आत्मीय मित्रो , 
नमस्कार 

जीवन की संभावनाए अनंत है . असीमित है . 
बस हमें जागना भर होता है और जानना भर ही होता है . 
सहज से ही जीवन बनता है . 
मेरी तो आप सभी से यही प्रार्थना है कि जीवन में खुश रहना सीखे . हम सभी के जीवन में दुःख होते है ,पर साथ ही परमात्मा हमें उन दुखो को जीने और उन दुखो से उभरने की शक्ति भी हमें प्रदान करते है. जीवन को जीना भी एक कला ही है . और मुझे तो पूर्ण विश्वास है कि आप सभी को ये कला आती है. है न ! तो कुछ नए का सृजन करे . कुछ नया सोचे . जीवन को जिए पूरी सहजता और मुक्तता के साथ . जीवन की और आपकी सार्थकता तब ही है.

तो आईये एक नए जीवन का शुभारंभ करे . अपने जीवन को मुस्कराते हुए बेहतर बनाए ! 

प्रणाम 
ढेर सारी शुभकामनाये और खुशियों के आलिंगनो के साथ ! 
आपका अपना 
विजय 


Sunday, January 5, 2014

जीवन का रिश्ता

मेरे आत्मन,
नमस्कार .

हम सभी अपने जीवन को जीते हुए अक्सर एक छोटी सी बात को भूल जाते है और वो बात होती है जीवन का रिश्ता - जीवन में बने हुए रिश्तो से !

विवेकाननद के इस सूक्ति में गहरा रहस्य छुपा हुआ है !

आप सभी को एक बेहतर जीवन की ढेर सारी शुभकामनाये !
आपका अपना
विजय


Wednesday, November 27, 2013

मित्रता

मेरे प्रिय आत्मन .
नमस्कार ;

मित्रता ज़िन्दगी की सबसे अच्छी नेमत होती है .

अच्छी मित्रता कीजिये और जीवन भर इस मित्रता का साथ निभाये .

कहीं मैंने पढ़ा था " BE SLOW IN CHOOSING A FRIENDS AND SLOWER IN CHANGING " सो जीवन में सबसे गहरा रिश्ता मित्रता का ही है .

और आप सभी मेरे मित्र है .आपकी मित्रता को सलाम !

आपका
अपना
विजय


Wednesday, August 28, 2013

मनमोहना . कृष्णा कृष्णा

कृष्ण असीम है. उन्हें जानना इस जन्म में सिद्ध नहीं होंगा , हाँ अगर कृष्ण की चेतना से कुछ बूँद हमें अगर प्राप्त हो जाए तो फिर बात ही क्या ! जीवन ही धन्य हो जायेंगा .

Saturday, August 24, 2013

शिक्षा

प्रत्‍येक मनुष्‍य जिससे मैं मिलता हूं किसी न किसी रीत में / व्यवहार में / गुण में / ज़िन्दगी जीने के ढंग में / कला में / मुझसे श्रेष्‍ठ होता है इसलिए मैं उससे कुछ शिक्षा लेता हूं !

Wednesday, August 21, 2013

माँ

प्रिय मित्रो ;

माँ से बढकर कोई नहीं मित्रो . माँ ही ईश्वर का सच्चा स्वरुप है .
माँ है तो हम है .
माँ है तो जीवन है .
माँ है तो धरा है .
माँ है तो ईश्वर है. 


प्रणाम माँ 







विजय

Friday, August 2, 2013

क्षमा / माफ़ी

मेरे आत्मन ,
आप सभी को मेरे प्रणाम

माफ़ करना  इस संसार का सबसे श्रेष्ठ कार्य है . यदि आप किसी को क्षमा करते है तो इससे बड़ा व्यगतीगत दान , मेरी नज़र में कोई नहीं है .

माफ़ी देने से आप खुद को ही बेहतर करते/ पाते  है . दुसरो की दगाबाजी , धोखेबाजी , या किसी भी अन्य प्रकार  के छल, सिर्फ आपको मानसिक संताप देते है , जब तक कि आप उन सभी दुखो के लिए उस व्यक्ति को क्षमा नहीं कर देते.

आईये . एक स्वस्थ मन ,तन के लिए हम क्षमा का दान करे. उसकी राह पकडे.

धन्यवाद

ह्रदय से प्रेम भरे अलिंगनो के साथ आप सभी का .

विजय


Friday, July 26, 2013

गलतियां

मेरे प्रिय आत्मन ;

नमस्कार , जैसे की अमिताभ बच्चन ने एक बार कहा था कि दुसरो की गलतियों से सीखे. क्योंकि हम इतने दिन नहीं जिंदा रह सकते है की उतनी गलतियां कर सके. आज की देशना यही है कि दोस्तों; हम ये समझे कि इस छोटे से जीवन में सीखना बहुत जरुरी है . और सीखने के लिए गलतियां  बहुत जरुरी है . लेकिन हम अपने छोटे से जीवन में इतनी गलतियां तो नहीं कर सकते की उनसे सब कुछ सीख सके. हाँ , एक बात हो सकती है की हम दुसरो की गलतियों से सीखे तब ही हम अपने जीवन को संवार सकते है . और अपने जीवन को संवारना किसे अच्छा नहीं लगेंगा . गलतियां हम सभी करते है . लेकिन सीखते बहुत कम है. इसलिए सीखिए . जीवन में सीखना ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है.

प्रणाम

आपका
स्वामी प्रेम विजय

Tuesday, July 23, 2013

हनुमान चालीसा


हनुमान चालीसा



श्री गुरू चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि,
बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥1॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार,
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस बिकार ॥2॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर,
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ॥3॥
राम दूत अतुलित बल धामा,
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥4॥
महावीर बिक्रम बजरंगी,
कुमति निवार सुमति के संगी ॥5॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा,
कानन कुंडल कुँचित केसा ॥6॥
हाथ बज्र और ध्वजा बिराजे,
काँधे मूंज जनेऊ साजे ॥7॥
शंकर सुवन केसरी नंदन,
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥8॥
विद्यावान गुनि अति चातुर,
राम काज करिबे को आतुर ॥9॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया,
राम लखन सीता मन बसिया ॥10॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा,
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥11॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे,
रामचंद्र के काज सवाँरे ॥12॥
लाय संजीवन लखन जियाए,
श्री रघुबीर हरषि उर लाए ॥13॥
रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई,
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥14॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं,
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥15॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा,
नारद सारद सहित अहीसा ॥16॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,
कवि कोविद कहि सकें कहाँ ते ॥17॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं किन्हा,
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥18॥
तुम्हरो मंत्र विभीषन माना,
लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥19॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू,
लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥20॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं,
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं ॥21॥
दुर्गम काज जगत के जेते,
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥22॥
राम दुआरे तुम रखवारे,
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे ॥23॥
सब सुख लहै तुम्हारी शरना,
तुम रक्षक काहु को डरना ॥24॥
आपन तेज सम्हारो आपै,
तीनों लोक हाँक तै कांपै ॥25॥
भूत पिशाच निकट नहि आवै,
महाबीर जब नाम सुनावै ॥26॥
नासै रोग हरे सब पीरा,
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥27॥
संकट तै हनुमान छुडावै,
मन करम वचन ध्यान जो लावै ॥28॥
सब पर राम तपस्वी राजा,
तिन के काज सकल तुम साजा ॥29॥
और मनोरथ जो कोई लावै,
सोइ अमित जीवन फ़ल पावै ॥30॥
चारों जुग परताप तुम्हारा,
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥31॥
साधु संत के तुम रखवारे,
असुर निकंदन राम दुलारे ॥32॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता,
अस वर दीन्ह जानकी माता ॥33॥
राम रसायन तुम्हरे पासा,
सदा रहो रघुपति के दासा ॥34॥
तुम्हरे भजन राम को पावै,
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥35॥
अंतकाल रघुवरपूर जाई,
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ॥36॥
और देवता चित्त ना धरई,
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥37॥
संकट कटै मिटै सब पीरा,
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥38॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ,
कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥39॥
जो सत बार पाठ कर कोई,
छूटइ बंदि महा सुख होई ॥40॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा,
होय सिद्धि साखी गौरीसा,
तुलसीदास सदा हरि चेरा,
कीजै नाथ ह्रदय महं डेरा,

पवन तनय संकट हरण्, मंगल मूरति रूप ॥
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥

Sunday, June 9, 2013

.सोचो ; साथ क्या ले जाओंगे यारो

प्रिय दोस्तों ,
नमस्कार ...कल मैंने पुछा था ....सोचो ; साथ क्या ले जाओंगे यारो .....

उसका सीधा सा जवाब है ... हम कुछ भी साथ लेकर नहीं आये थे ... लेकिन हाँ, जाते समय , बहुत कुछ साथ जायेंगा , हमारा भलापन, हमारी अच्छाई , हमारा प्रेम , हमारी दया , हमारी क्षमा , जीवन के वो पल , जिनमे हमने इस दुनिया के लिए सोचा , और दुसरो के लिए निस्वार्थ भाव से कुछ किया .... बस यही है जो साथ जायेंगा , बहुत समय पहले , शायद एक साल पहले मैंने एक पोस्ट लगाई थी :::  when death comes there will be only two questions ....... first - did you love and second - did you give ...  बस यही सार है जीवन का ..... प्रणाम ...

सदा आपका 

विजय 

Tuesday, June 4, 2013

सत्य

प्रिय आत्मन , 
नमस्कार .
मैं कुछ देर पहले ओशो के पत्र पढ़ रहा था . जो की उन्होंने अपने सन्यासियों को लिखा था . एक पत्र था जो उन्होंने अपने मित्र और सन्यासी श्री कोठारी जी को लिखा था . 
उसमे उन्होंने कहा था " हम चाहना ही नहीं जानते , वरना सत्य कितना निकट है " ये वाक्य मेरे मन में समां गया . कितनी सच्ची बात है . हा सच में ही नहीं जानते की हमें क्या चाहिए . या हमारी वास्तव में चाहत क्या है . नहीं तो ज्ञान से हमारी दूरी कितनी है . बिलकुल भी नहीं . 
तो सत्य यही है की हम ये जान ले की हमें क्या पाना है , हमारी चाहत क्या है . इजी फिर उसके बाद सारी तलाश खत्म हो जायेंगी . सब कुछ हमारे सामने दर्पण के तरह होंगा . तो मित्रो , आईये उस सत्य की खोज करे. और अपने आपको उसमे डुबो ले. 
प्रणाम आपका ही विजय

Thursday, May 30, 2013

एक बोध कथा



जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है । 
दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ... 
उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ... आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ... 
प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया – 
इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो .... 
टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं , 
छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और 
रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है .. 
अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ... 
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तो रेत है .. 
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ... 
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये । 

Sunday, May 5, 2013

कबीर ...!!



कस्तूरी कुँडली बसै, मृग ढूँढे बन माहिँ।
ऐसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ॥

प्रेम ना बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रुचे, सीस देई लै जाय॥

माला फेरत जुग भया, मिटा ना मन का फेर।
कर का मन का छाड़ि के, मन का मनका फेर॥

माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गया सरीर।
आसा तृष्णा ना मुई, यों कह गये कबीर॥

झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।
खलक चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद॥

वृक्ष कबहुँ नहि फल भखे, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारण, साधु धरा शरीर॥

साधु बड़े परमारथी, धन जो बरसै आय।
तपन बुझावे और की, अपनो पारस लाय॥

सोना, सज्जन, साधु जन, टुटी जुड़ै सौ बार।
दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एकै धकै दरार॥

जिहिं धरि साध न पूजिए, हरि की सेवा नाहिं।
ते घर मरघट सारखे, भूत बसै तिन माहिं॥

मूरख संग ना कीजिए, लोहा जल ना तिराइ।
कदली, सीप, भुजंग-मुख, एक बूंद तिहँ भाइ॥

तिनका कबहुँ ना निन्दिए, जो पायन तले होय।
कबहुँ उड़न आँखन परै, पीर घनेरी होय॥

बोली एक अमोल है, जो कोइ बोलै जानि।
हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि॥

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करे, आपहुँ सीतल होय॥

लघुता ते प्रभुता मिले, प्रभुता ते प्रभु दूरी।
चींटी लै सक्कर चली, हाथी के सिर धूरी॥

निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥

मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकताहल मुकता चुगै, अब उड़ि अनत ना जाहिं॥

शिक्षा ....!!


सत्य के दिशा में सबसे बड़ा अपराध तो तब हो जाता है , जब हम सत्य के संबंध में रूढ़ धारणाओं को बच्चो के ऊपर थोपने का आग्रह करते है ! यह अत्यंत घातक दुराग्रह है ! 

परमात्मा और आत्मा के संबंध में विश्वास या अविश्वास बच्चो पर थोपे जाते है ! गीता, कुरान, कृष्ण , महावीर उन पर थोपे जाते है ! इस भांति सत्य के संबंध में उनकी जिज्ञासा पैदा ही नही हो पाती है ! वे स्वयं के प्रश्नों को ही उपलब्ध नही हो पाते है , और तब स्वयं के समाधानों को खोज लेने का तो सवाल ही नही है ! 

बने-बनाये तैयार समाधानों को ही वे फिर जीवनभर दुहराते रहते है ! उनकी स्थिति तोतो के जैसी हो जाती है ! पुनरुक्ति चिंतन नही है ! पुनरुक्ति तो जड़ता है ! सत्य किसी और से नही पाया जा सकता है, उसे तो स्वयं ही खोजना और पाना होता है ! 

---- ओशो

Monday, April 29, 2013

अपेक्षा


मेरे प्रिय आत्मन ; 
नमस्कार 

आज आपको बताऊ , जीवन में सारे दुखो का कारण मात्र और मात्र अपेक्षा ही है . मानव का ये स्वभाव है की हम हर किसी  से अपेक्षा करते है . और कभी कभी ये अपेक्षाए जरुरत से ज्यादा हो जाती है और जब हमें , हमारी अपेक्षाए पूरी होती नहीं दिखाई देती; तब क्रोध, क्षोभ और दुःख [ निराशा भी ] हमारे साथी बन जाते है और हम अपना सुन्दर जीवन नष्ट कर देते है. 

अपेक्षा जरुरी है , ये हमारे स्वप्नों को अग्नि देती है , पर अति अपेक्षा ही दुःख देती है . इसलिए उम्मीद करे पर ज्यादा नहीं . 

आपको प्रेम .
विजय 

Friday, April 26, 2013

जरा सोचिये तो ...!



कामयाब व्यक्ति .....!!!



अनुशासन

हर घर में अगर अनुशासन का पालन किया जाए तो युवाओं द्वारा किए जाने वाले अपराधों में 95 प्रतिशत तक कमी जाऐगी । 
--- जे एडगर हूवर

Sunday, April 21, 2013

प्रतिज्ञा

प्रतिज्ञा करें कि छोटों के साथ नरमी से, बड़ों के साथ करूणा से, संघर्ष करने वालों के साथ हमदर्दी से और कमजोर व ग़लती करने वालों के साथ सहनशीलता से पेश आने की। क्‍योंकि हम अपने जीवन में कभी न कभी इनमें से किसी न किसी स्थिति से गुजरते है। 
--- लायड शीयरर

Monday, March 25, 2013

|| गीता में नवधा भक्ति ||


भक्ति ही एक ऐसा साधन है जिसको सभी सुगमता से कर सकते हैं और जिसमें सभी मनुष्यों का अधिकार है | इस कलिकाल में तो भक्ति के समान आत्मोद्धार के लिए दूसरा कोई सुगम उपाय है ही नहीं ; क्योंकि ज्ञान , योग , तप , त्याग आदि इस समय सिद्ध होने बहुत ही कठिन है | संसार में धर्म को मानने वाले जितने लोग हैं उनमें अधिकाँश ईश्वर - भक्ति को ही पसंद करते हैं | जो सतयुग में श्रीहरी के रूप में , त्रेतायुग में श्रीराम रूप में , द्वापरयुग में श्रीकृष्ण रूप में प्रकट हुए थे , उन प्रेममय नित्य अविनाशी , सर्वव्यापी हरी को ईश्वर समझना चाहिए | महऋषि शांडिल्य ने कहा है ' ईश्वर में परम अनुराग [ प्रेम ] ही भक्ति है |' देवर्षि नारद ने भी भक्ति - सूत्र में कहा है ' उस परमेश्वर में अतिशय प्रेमरूपता ही भक्ति है और वह अमृतरूप है |' भक्ति शब्द का अर्थ सेवा होता है | प्रेम सेवा का फल है और भक्ति के साधनों की अंतिम सीमा है | जैसे वृक्ष की पूर्णता और गौरव फल आने पर ही होता है इसी प्रकार भक्ति की पूर्णता और गौरव भगवान में परम प्रेम होने में ही है | प्रेम ही उसकी पराकाष्ठा है और प्रेम के ही लिए सेवा की जाती है | इसलिए वास्तव में भगवान में अनन्य प्रेम का होना ही भक्ति है |
भक्ति के प्रधान दो भेद हैं - एक साधनरूप , जिसको वैध और नवधा के नाम से भी कहा है और दूसरा साध्यरूप , जिसको प्रेमा - प्रेमलक्षणा आदि नामों से कहा है | इनमें नवधा साधनरूप है और प्रेम साध्य है | श्रीमद्भागवत में प्रह्लादजी ने कहा है ' भगवान विष्णु के नाम , रूप , गुण और प्रभाव आदि का श्रवण , कीर्तन , और स्मरण तथा भगवान की चरणसेवा , पूजन और वन्दन एवं भगवान में दासभाव , सखाभाव और अपने को समर्पण कर देना - यह नौ प्रकार की भक्ति है |' इस उपर्युक्त नवधा भक्ति में से एक का भी अच्छी प्रकार अनुष्ठान करने पर मनुष्य परम पद को प्राप्त हो जाता है ; फिर जो नवों का अच्छी प्रकार से अनुष्ठान करने वाला है उसके कल्याण में तो कहना ही क्या है ?
[ १ ] श्रवण - भगवान के प्रेमी भक्तों द्वारा कथित भगवान के नाम , रूप , गुण , प्रभाव , लीला , तत्त्व , और रहस्य की अमृतमयी कथाओं का श्रधा और प्रेमपूर्वक श्रवण करना एवं प्रेम में मुग्ध हो जाना श्रवणभक्ति का स्वरूप है | गीता [ श्लोक ४ / ३४ ; १३ / २५ ] में भगवान कहते हैं ' हे अर्जुन ! उस ज्ञान को तू समझ ; श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य के पास जाकर उनको दंडवत प्रणाम करने से , उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से तत्त्व को जानने वाले वे ज्ञानी - महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे |'
[ २ ] कीर्तन - भगवान के नाम , रूप , गुण , प्रभाव , चरित्र , तत्त्व और रहस्य का श्रधा और प्रेमपूर्वक उच्चारण करते - करते शरीर में रोमांच , कंठावरोध , अश्रुपात , हृदय की प्रफुल्लता , मुग्धता आदि का होना कीर्तन - भक्ति का स्वरूप है | गीता [ श्लोक ९ / ३० , ३१ ; १८ / ६८ - ६९ ; ] में कीर्तन - भक्ति का महत्त्व बताया गया है |
[ ३ ] स्मरण - भगवान को स्मरण करना ही भक्ति के ' प्राण ' है | केवल स्मरण - भक्ति से सारे पाप , विघ्न , अवगुण , और दुखों का अत्यंत अभाव हो जाता है | गीता [ श्लोक ६ / ३० ; ८ / ७ - ८ ; ८ / १४ ; ९ / २२ ; १२ / ६ - ८ ; १८ / ५७ - ५८ ] में भगवान ने स्मरण - भक्ति का ही महत्त्व बताया है |
[ ४ ] पाद सेवन - जिनके ध्यान से पापराशि नष्ट हो जाती है , भगवान के उन चरणकमलों का चिरकाल तक चिंतन करना चाहिए | भगवान की चरणकमल रुपी नौका ही संसार - सागर से पार उतारनेवाली है |
[ ५ ] अर्चन - जो लोग इस संसार में भगवान की अर्चना - पूजा करते हैं वे भगवान के अविनाशी आनंदस्वरूप परमपद को प्राप्त हो जाते हैं | गीता [ श्लोक १८ / ४६ ] में बताया है की भगवान की अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परमसिद्धि को प्राप्त हो जाता है | गीता [ श्लोक ९ / २६ ] में भगवान कहते हैं ' शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ पत्र , पुष्प , फल और जल आदि मैं सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीतसहित खाता हूँ |'
[ ६ ] वन्दन - समस्त चराचर भूतों को परमात्मा का स्वरूप समझकर शरीर या मन से प्रणाम करना और ऐसा करते हुए भगवतप्रेम में मुग्ध होना वन्दन - भक्ति है | गीता [ श्लोक ११ / ४० ] में इसका स्वरूप बताया गया है | [ ७ ] दास्य - भगवान के गुण , तत्त्व , रहस्य और प्रभाव को जानकर श्रधा - प्रेमपूर्वक उनकी सेवा करना और उनकी आज्ञा का पालन करना दास्य -भक्ति है | [ ८ ] सख्य - भगवान के तत्त्व , रहस्य , महिमा को समझकर मित्र भाव से उनमें प्रेम करना और प्रसन्न रहना [ श्लोक ४ / ३ ; १८ / ६४ ] सख्य - भक्ति है | [ ९ ] आत्मनिवेदन - जिस मनुष्य ने भगवान का आश्रय लिया है उसका अंत:करण शुद्ध हो जाता है एवं वह ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है [ श्लोक ७ / १४ ; ९ / ३२ ; ९ / ३४ ; १८ / ६२ ; १८ / ६६ ] आदि में शरणागति का महत्त्व बताया गया है | || इति ||

Sunday, March 17, 2013

ज़िन्दगी


मेरे आत्मन ,
सोचिये तो .....!!




ईश्वर


प्रिय आत्मन ;
चाणक्य ने कहा है कि ईश्वर मूर्तियों में नहीं , बल्कि आपकी भावनाओं में रहता है और आत्‍मा आपका मन्दिर है। 
आईये इन शब्दों को मन से ग्रहण करे और जीवन को सुखमय बनाए .
प्रणाम 
आपका सेवक 
विजय 

Wednesday, February 20, 2013

ईश्वर का स्वरूप

एक महात्मा से किसी ने पूछा- 'ईश्वर का स्वरूप क्या है?' 

महात्मा ने उसी से पूछ दिया-'तुम अपना स्वरूप जानते हो?' 

वह बोला- 'नहीं जानता।' 

तब महात्मा ने कहा- 'अपने स्वरूप को जानते नहीं जो साढ़े तीन हाथ के शरीर में 'मैं-मैं कर रहा है और संपूर्ण विश्व के अधिष्ठान परमात्मा को जानने चले हो। पहले अपने को जान लो, तब परमात्मा को तुरंत जान जाओगे। 

एक व्यक्ति एक वस्तु को दूरबीन से देख रहा है। यदि उसे यह नहीं ज्ञान है कि वह यंत्र वस्तु का आकार कितना बड़ा करके दिखलाता है, तो उसे वस्तु का आकार कितना बड़ा करके दिखलाता है, तो उसे वस्तु के सही स्वरूप का ज्ञान कैसे होगा? 


अतः अपने यंत्र के विषय में पहले जानना आवश्यक है। हमारा ज्ञान इन्द्रियों के द्वारा संसार दिखलाता है। हम यह नहीं जानते कि वह दिखाने वाला हमें यह संसार यथावत्‌ ही दिखलाता है या घटा-बढ़ाकर या विकृत करके दिखलाता है। 

गुलाब को नेत्र कहते हैं- 'यह गुलाबी है।' नासिका कहती है- 'यह इसमें एक प्रिय सुगंध है।' त्वचा कहती है- 'यह कोमल और शीतल है।' चखने पर मालूम पड़ेगा कि इसका स्वाद कैसा है। पूरी बात कोई इंद्री नहीं बतलाती। सब इन्द्रियां मिलकर भी वस्तु के पूरे स्वभाव को नहीं बतला पातीं।

स्वामी प्रेमानन्द पुरी 

तुम्हारा जीवन तुम पर निर्भर है.....ओशो


तुम्हारा जीवन तुम पर निर्भर है.....ओशो

न कोई कर्म, न कोई किस्मत, न कोई ऐतिहासिक आदेश- तुम्हारा जीवन तुम पर निर्भर है। उत्तरदायी ठहराने के लिए कोई परमात्मा नहीं, सामाजिक पद्धति या सिद्धांत नहीं है। ऐसी स्थिति में तुम इसी क्षण सुख में रह सकते हो या दुख में।
स्वर्ग अथवा नरक कोई ऐसे स्थान नहीं हैं जहाँ तुम मरने के बाद पहुँच सको, वे अभी इसी क्षण की संभावनाएँ हैं। इस समय कोई व्यक्ति नरक में हो सकता है, अथवा स्वर्ग में। तुम नरक में हो सकते हो और तुम्हारे पड़ोसी स्वर्ग में हो सकते हैं।

एक क्षण में तुम नरक में हो सकते हो और दूसरे ही क्षण स्वर्ग में। जरा नजदीक से देखो, तुम्हारे चारों ओर का वातावरण परिवर्तित होता रहता है। कभी-कभी यह बहुत बादलों से घिरा होता है और प्रत्येक चीज धूमिल और उदास दिखाई देती है और कभी-कभी धूप खिली होती है तो बहुत सुंदर और आनंदपूर्ण लगता है।

ओशो

Friday, November 23, 2012

प्रिय आत्मीय मित्रो , 
नमस्कार .

आज आपसे एक बात कहूँगा ....

जो भी कार्य करे होश में करे . एक awaken state of mind में करे. आप पायेंगे कि हर चीज और बेहतर हो गयी है . कार्य ऐसे न करे कि उसे किसी भी तरह से करना है . कार्य ऐसे करे कि , उस कार्य से प्रेम हो , उसे होश में करे, ध्यान देकर करे. आप पायेंगे , कि वो कार्य अचानक ही बहुत सुन्दर हो चला है . यही जीवन को जीने का सही ढंग है .

हरी ॐ तत्सत ! 
प्रणाम 
आपका अपना 
हृदयम

Thursday, November 1, 2012

सहजता और सरलता

प्रिय मित्रो , 

जीवन में सहजता और सरलता होनी चाहिए . हम अपने जीवन को जितना ज्यादा सरल और सहज बनायेंगे , जीवन उतना ही सुखमय होंगा .ये ही जीवन का मूल मन्त्र है . बस खुश रहिये , सहज रहिये . और जीवन के बहाव का आनंद लीजिये . 


आपका 

विजय 

Tuesday, October 30, 2012

परमात्मा एक - रूप अनेक !




‘‘यह कहा जाता है कि यह दृष्टांत-कथा सूफ़ी सद्गुरु इमाम मुहम्मद बाकिर से ही संबंधित है। यह बोध होने पर कि मैं चीटियों की भाषा बोल और समझ सकता हूं, मैंने उनमें से एक चींटी से सम्पर्क किया और पूछा-‘तुम्हारा परमात्मा किस आकृति का है? क्या वह चींटी से मिलता जुलता है?
उसने उत्तर दियाः परमात्मा? नहीं, वास्तव में हम लोगों के पास एक डंक होता है, लेकिन परमात्मा, उसके पास दो डंक होते हैं।’’

परमात्मा क्या है ?

यह तुम्हीं पर निर्भर करता है। तुम्हारा परमात्मा तुम्हारा होगा, मेरा परमात्मा, मेरा परमात्मा होगा। इस बारें में उतने ही अधिक परमात्मा हैं, जितनी वहां परमात्मा की ओर देखने की सम्भावनाएं हैं। और यह स्वाभाविक है। हम अपने तल और स्तर के पार नहीं जा सकते, हम अपनी आंखों और मन के द्वारा परमात्मा के प्रति केवल सचेत हो सकते हैं। हमारे शरीर और मन के छोटे से दर्पण में परमात्मा एक विचार या प्रतिच्छाया की भांति होगा। इसी वजह से वहां परमात्मा के बारें में इतनी अधिक धारणाएं है।

यह आकाश में पूर्णमासी की चांदनी रात में दमकते चंन्द्रमा की भांति है। अस्तित्व में लाखों करोड़ों सरिताएं झीलें, समुद्र और छोटे झरने, सोते और तालाब है और इन सभी का जल परमात्मा को ही प्रतिबिम्बित करता है। उन सभी के जल में चन्द्रमा की ही छाया बनती है। एक छोटे से पोखर में चन्द्रमा की अपने ढंग से प्रतिच्छाया बनेगी और विशाल सागर उसे अपने ढंग से प्रतिबिम्बित करेगा।

तब इस बारें में वहां बहुत बड़े-बड़े विवाद हैं। हिन्दू कुछ कहते हैं, मुसलमान कुछ दूसरी चीज कहते हैं, ईसाई फिर कुछ और ही बात कहते हैं। और इसी तरह से कितनी ही तरह की बातें कही जाती हैं। सारा विवाद ही मूर्खतापूर्ण है। पूरा विवाद ही अर्थहीन है। परमात्मा लाखों दर्पणों में लाखों तरह से अपने को प्रतिबिम्बित करता है। प्रत्येक दर्पण अपने ढंग से उसे प्रतिबिम्बित करता है। सभी बुनियादी बातों में पहली चीज यही समझ लेनी जैसी है। इस बुनियादी बात को न समझने के कारण ही धर्मो के मध्य इस बारें में विवाद होना स्वाभाविक है, क्योंकि वे सभी यह सोचते हैं-’यदि हमारा दृष्टिकोण ठीक है, तब दूसरों का गलत होगा ही। उनके दृष्टिकोण का ठीक होना, दूसरों के गलत होने पर निर्भर होता है। यह मूढ़ता है। परमात्मा तो अनंत है और तुम अनेक तरह से और बहुत सी खिड़कियों के द्वारा देख सकते हो-और यह स्वाभाविक है कि तुम केवल उसे स्वयं के माध्यम से ही देख सकते हो-तुम ही वह खिड़की बनोगे। तुम्हारा परमात्मा, परमात्मा को उतना ही प्रतिबिम्बित करेगा जितना कि वह तुम्हें करेगा; तुम दोनों ही वहां होगे।

जब मंसूर कुछ भी कहता है, तो वह कुछ भी बात अपने ही बारे में कह रहा है। यह अत्यंत ही प्रभावी और आकर्षक वक्तव्य है-‘तब वह एकत्व और मिलन घटित हुआ, तब पिघल कर एकरूपता घटित हुई’। यह वक्तव्य परमात्मा की अपेक्षा अल हिलाज मंसूर के बारे में अधिक कहता है। मंसूर का यही है परमात्मा। यह मंसूर का अनूठा अनुभव है।

मंसूर को कत्ल कर दिया गया, जीसस की तरह उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया मुसलमान उसे न समझ सके। ऐसा हमेशा ही होता है। तुम कोई भी महत्वपूर्ण चीज, स्वयं अपने से ऊंचे तल की नहीं समझ सकते। यह तुम्हारे लिए एक खतरा बन जाता है। यदि तुम उसे स्वीकार करते हो, तब तुम्हें यह ही स्वीकार करना होगा कि वहां कुछ ऐसी भी संभावना है, जो तुम्हारी अपेक्षा अधिक उच्चतम तल की है। इससे अहंकार आहत होता है, इससे तुम्हारा अपमान होता है, तुम्हें हीनता का अनुभव होता है। तुम मंसूर को, क्राइस्ट को, अथवा सुकरात को केवल एक इसी कारण से मार देना चाहते हो, क्योंकि तुम यह सोच भी नहीं सकते, तुम यह स्वीकार नहीं कर सकते कि तुम्हारे दृष्टिकोण की अपेक्षा, इस बारें में किसी अन्य दृष्टिकोण की भी संभावना है। तुम यह विश्वास हुए प्रतीत होते हो कि इस अस्तित्व में तुम्हीं अंतिम सत्य हो, तुम्ही एक नायाब उदाहरण हो, कि तुम पराकाष्ठा पर हो और इस बारें में तुम्हारे पार कहीं कुछ भी नहीं है। यह अधार्मिक चित्त का मूढ़तापूर्ण दृष्टिकोण है। एक धार्मिक मन हमेशा ही हर चीज के लिए खुला हुआ होता है। एक धार्मिक चित्त कभी भी अपनी सीमाओं से आबद्ध नहीं होता। वह सदा यह स्मरण रखता है कि विकास का कहीं कोई अंत नहीं है, और प्रत्येक विकसित हुए चला जाता है।

-ओशो
पुस्तकः अभी, यहीं,

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाए तरुवर की छाया . ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है , मैं ; जबसे तेरी शरण में आया मेरे राम........

Friday, August 10, 2012

कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाये.



मेरे प्रिय आत्मन मित्रों .
आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी है . आप सभी को तथा इस धरा के हर व्यक्ति को इस पावन पर्व की शुभकामनाये.
श्री कृष्ण मेरे आराध्य है , तथा प्रेम तथा भक्ति के प्रकाश रूप है . और हम हृदयम कम्यून में हर पल इसी उत्सव को मनाते है .
आप सभी को इस महान उत्सव का आनंद प्राप्त हो .
प्रणाम .
हरे कृष्ण !!!!

Wednesday, July 25, 2012

गीतांजलि : रविन्द्रनाथ टैगोर

गीतांजलि : रविन्द्रनाथ टैगोर

मित्रो , हममें से शायद ही कोई होंगा , जिसने इस कृति को नहीं पढ़ा है . और अगर नहीं पढ़ा है तो मेरा निवेदन है कि जरुर ही पढ़ ले . इसलिए नहीं कि इसे सब महान कृति मानते है . ये है ही एक महान कृति.

आप पढेंगे तो पता चलेंगा कि कवि गुरु ने कितने अच्छे शब्दों में इश्वर के प्रति अपनी भक्ति को रचा हुआ है . रविन्द्रनाथ  टैगोर लिखित गीतांजलि मात्र एक पुस्तक नहीं बल्कि एक महाकाव्य रूपी ग्रंथ है। और ये कहने में कोई संकोच भी नहीं है कि इस पुस्तक के कारण दुनिया के साहित्यकारों ने भारत के उच्च साहित्य लेखनी को जाना.

मैंने इसे कई बार पढ़ा है और मुझे इसके सारे गीत बहुत पसंद है . और सिर्फ इसलिए भी मैं रविन्द्र संगीत को सुनता हूँ और बहुत पसंद करता हूँ. 

गीतांजलि में एक गीत है : चाई गो आमि तोमारे चाई : कविगुरु इसमें प्रभु को पुकारते है .

ऐसे ही सुन्दर गीतों से ये पुस्तक सजी हुई है . आप सभी से निवेदन  है कि इसे एक बार फिर से पढ़े और प्रभु के प्रति अपनी भक्ति को कोमल भाव दे.

प्रणाम
आपका
विजय

Monday, July 23, 2012

हे राम .....!

मेरे प्रिय मित्रों ,

कभी कभी बहुत तकलीफ होती है . तब ऐसे वक्त में सिर्फ एक ही काम कीजिये . अपने दिल पर हाथ रखिये और अपने प्रभु का नाम लीजिए . और कहिये . हे भगवान , मेरा सब कुछ तू ही . मैं भी तेरा , मेरा जीवन भी तेरा. हे राम मेरे .. मुझ पर अपनी कृपा बनाए रखना .

देखिये कैसे जादू होता है ..

बहुत से प्रेम भरे आलिंगनो के साथ
आपका अपना 
विजय 

Friday, July 20, 2012

बच्चो जैसे बने

प्रिय मित्रो ,

पिछले दिनों मैं बाईबिल पढ़ रहा था . उसमे प्रभु ईशा से उनके शिष्य पूछते है कि स्वर्ग में कैसे जाए . ईशा एक बालक को थामकर कहते है कि बच्चो जैसे बने. स्वर्ग अपने आप ही मिल जायेंगा .


इस घटना में कितनी बड़ी सच्चाई है दोस्तों. बच्चे मन के सच्चे होते है , भोले होते है . सारा जगत ही उनमे समाया हुआ होता है .


कितना अच्छा  रहेंगा यदि हम बच्चो के भावो को और उनकी सच्चाई को अपनाए .

सोचिये ....और प्रयास कीजिये   !!!

एक बेहतर इंसान बनने का रास्ता बच्चो के मूल भाव को स्वीकार करने से ही आयेंगा.


धन्यवाद और प्रणाम

आपका
विजय

जियो जी भर के ..

मेरे प्रिय मित्रो ,

कल मैं शाम को बहुत उदास था, राजेश खन्ना की मृत्यु के कारण . मुझे याद है , इंजीनियरिंग के पढाई के वक़्त मैं उनकी फिल्मो के गाने गाता था. लेकिन आज आनंद चला गया . लेकिन आनंद जैसे किरदार कभी नहीं मरते ..हमारे दिलो में रहते है . मैंने कल उनकी फिल्मो के गाने अपने दोस्तों को सुनाकर उन्हें श्रधांजलि दी .

कल एक बात मुझे समझ में आई कि राजेश को किसी और कारण से ज्यादा उनके अकेलेपन ने मारा है .

दोस्तों , हम सब कहीं न कहीं अकेले होते है अपनी ज़िन्दगी में. और कभी कभी ये अकेलापन हमारे दिल और दिमाग में घर बना लेता है . और तब धीरे धीरे हमें हमारा ही अकेलापन मारने लगता है . राजेश के साथ यही हुआ.

आज मैं आपसे यही कहना चाहूँगा कि अकेलेपन को घर मत बनाने दे. अपने आपको किसी भी creative skills  में डुबो दे.. दुनिया आपकी है . जमीन आपकी है , आसमान आपका है . चाँद सूरज तारे और ये सुन्दर सी प्रकृति आपकी है .. बस अपने अकेलेपन को इन सब चीजो से भर दे , जो भगवान् में हमें दिया हुआ है . जीवन को भरपूर जिए .

जैसे कि राजेश खन्ना , आनंद फिल्म में कहते है कि ज़िन्दगी बड़ी होनी चाहिए , लम्बी नहीं .. मैं भी यही बात आप सभी से कहता हूँ. जियो जी  भर के .. खुशिया आपके आस पास ही है . आपके भीतर ही है.

प्रणाम
आपका सभी का
विजय

Thursday, July 19, 2012

अनुभूतियाँ

मेरे प्रिय मित्रों / आत्मन

हम अक्सर अपने कर्मो को करने के चक्कर में कुछ गलत कर्म भी कर लेते है और कुछ अनुचित शब्दों का प्रयोग भी कर लेते है . लेकिन जैसे कि माया अन्जेलो ने कहा है ,कि , लोग भले ही  हमारे कर्म और हमारे शब्द भूल जाए , लेकिन कोई ये नहीं भूलता कि , हमने उन्हें कैसी अनुभूतियाँ दी .

आज , मैं आप सबसे निवेदन करता हूँ कि अपने शब्दों को और अपने कर्मो को संवेदनशील बनाए रखे. क्योंकि , वक्त तो गुजरता ही रहता है ...और लोग हर अनुभूति को संजोये रखे रहते है .. अच्छा करिये अच्छा ही होंगा .. प्रेम पाने के लिये सिर्फ प्रेम ही करे..

आप सभी  का धन्यवाद.
आप का जीवन शुभ हो
असीम प्रेम से भरे आलिंगनो के साथ
आपका
विजय

Saturday, July 7, 2012

ख़ुशी और खुश होना

प्रिय मित्रो :
शुभप्रभात और जीवन की शुभकामनाये !!!


आज बहुत सीधी सी बात कहूँगा आप से. जीवन में छोटी छोटी बातो में खुशियाँ ढूंढें . क्योंकि अक्सर बड़ी बड़ी चीजे हमें दुःख देती है . इसलिए बस छोटी छोटी बाते, जैसे बच्चो का हँसना और मुस्कराना , अपने घर के पौधों में फूलो  के रंगों को देखना ,  आकाश में छाए बादलो को देखना , बारिश की बूंदों में नहाना, सुबह की हवा में पूरे फेफड़ो में जी भर कर सांस लेना , किसी सुनसान जगहो  पर किसी मंदिर के आगे झुक जाना , हर किसी को माफ़ कर देना , किसी बूढ़े से पेड़ को अपनी बांहों में भर लेना , सड़क पर रुक कर दुनिया को देखना .. और वो सारी चीजो में जीवन को ढूंढ कर मस्त होना जो हमें ईश्वर ने मुफ्त में दी है ... जीवन खुश होने का नाम है . आप तो बस हर बात में खुश होना सीख लीजिये मेरी तरह.. जैसे मैं आप सबकी संगत में खुश हूँ. जीवन से खुश हूँ....!


याद रखे . ख़ुशी और खुश होना आपका अधिकार है . जो की ईश्वर से आपको मिला है .. 


आपका
अपना
विजय

Tuesday, July 3, 2012

आप सभी को गुरुपूर्णिमा की ढेर सारी शुभकामनाये !






मेरे प्रिय आत्मन ;

आप सभी को गुरुपूर्णिमा की ढेर सारी शुभकामनाये !

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरूर देवो महेश्वराय।
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै ‍श्री गुरुवे नम:।।

मित्रों, गुरू को साक्षात परब्रह्म की संज्ञा दी गई है। और बिन गुरु ज्ञान नाही होवत है . संत कबीर ने भी यही कहा है कि नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार !

हम सभी जीवन के इस संग्राम में अध्यात्म की खोज में एक अनंत यात्रा पर चल रहे है . हृदयम के इस समूह में आप सभी हर दिन , निरंतर इसी यात्रा में दूसरे सहभागियो के साथ बहुत से गुरुओ के द्वारा दिए गये ज्ञान को प्राप्त कर रहे है .

मैं आप सभी को इस यात्रा की बधाई और शुभकामनाये देता हूँ. गुरु आपके जीवन में प्रकाश लाते है . जितना आप अपने गुरु को समर्पित होंगे उतना ही आप ईश्वर के करीब पहुंचेंगे और इस प्रक्रिया में आप अपने गुरु के निकट होंगे. भक्ति की राह में गुरु का होना बहुत जरुरी है .

भगवान कृष्ण के १६ गुरु थे. सोचिये .भगवान भी बिन गुरु के नहीं रहे फिर हम क्या . इसलिए किसी न किसी गुरु के आँचल को थाम लीजिए और अनंत यात्रा में उनका आशीर्वाद प्राप्त करे.

मैं बहुत सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे ओशो , रविशंकर, मुरारी बापू, दलाई लामा इत्यादि गुरुओ का आशीर्वाद मिला . और सबसे ऊपर तो मेरे प्रभु श्री साईं ही है .जो गुरु भी है , मित्र भी  है .और देवता भी .

अंत में एक बार फिर से आप सभी को गुरुपूर्णिमा की बधाई .

ॐ सांई राम...!

आपका
विजय

Wednesday, April 11, 2012

ईश्वर

सच तो यही है कि मित्रों ईश्वर मन में बसा हुआ है . उसका वजूद का ख्याल हमें किसी भी सुख में नहीं आता है ,जब दुःख हो तो तुरंत ही उसका ख्याल आता है . अब चूंकि सुख और दुःख दोनों ही मन की ही देन है , इसलिए ईश्वर का होना और नहीं होना वो भी मन की ही देन है . जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखी तिन तैसी..! 
प्रणाम ..

Wednesday, April 4, 2012

" सब ठीक ही होंगा "

मेरे प्रिय आत्मन ;

[ आत्मन शब्द मैंने ओशो के प्रवचन से लिया है , पहले मैं मित्रों कह कर सम्बोदित करता था , अब से आत्मन ही कह कर आप सभी को पुकारूँगा,. क्योंकि आपकी और मेरी आत्मा एक ही परमात्मा का अंश है . ]


नमस्कार ;

अक्सर हम शिकायत करते है की मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ , लेकिन कुछ समय बीत जाने के बाद लगता है की जो हुआ अच्छा ही हुआ , जो होता है अच्छे के लिए ही होता है . ईश्वर के बनाए हुए निजाम में थोड़ी देर के लिए लगता है की गलत हुआ है , लेकिन यही सही होता है ,जो कि कुछ देर के बाद पता चलता है . 

समय सब दर्दो की दवा है .. ...!!!

इसलिए उस परमपिता पर विश्वास रखिये . " सब ठीक ही होंगा "

ये ही आज का महामंत्र है : " सब ठीक ही होंगा " इसे अपने जीवन में स्वीकार करिए .

धन्यवाद.
प्रणाम और प्रेम भरे आलिंगनो के साथ
आपका
विजय

Friday, March 23, 2012

प्रभुकृपा हमेशा हम सब पर बनी रहे !

 
जो इच्छा करिहो मन माही,                                                                                 
हरि प्रसाद कछु दुर्लभ नाही,

प्रभु के परम इच्छा और आशीर्वाद ही हमारे जीवन का सहारा है .
बस उनकी कृपा हमेशा हम सब पर बनी रहे.

प्रणाम
विजय

शुभकामनाएँ !!!


आप सभी मित्रो को तथा आपके परिवार के सदस्यों को गुढी पाडवा ,उगादी , तेलगू नववर्ष, कन्नड़ नववर्ष , चेटीचंड ,नवरेश ,चैत्र सुख्लदी, नंदना नाम नवसम्वतसर-2069 की हार्दिक शुभकामनाएँ !!!

ईश्वर अपने आशीर्वादों से आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ व सुख शान्ति देवे. आपके परिवार में हमेशा धन धान्य की बढोतरी रहे .आपके बच्चे तथा परिवार के अन्य सदस्य स्वस्थ रहे .

प्रणाम
विजय

Friday, February 24, 2012

मृत्यु के पहले अवश्य जी ले.....!!

मेरे प्रिय मित्रो ;
नमस्कार !
जब हम मृत्यु को प्राप्त होंगे , तब सिर्फ तीन ही प्रश्न विचारणीय होंगे ::

१. क्या हमने जीवन जिया
२. क्या हमने प्रेम किया
३. क्या हमने इस संसार को वापस कुछ दिया /कुछ बांटा

और यदि इन में से एक भी या तीनो प्रश्नों के उत्तर यदि "न" में है , तो हमारा सारा जीवन जीना ही व्यर्थ है . और यदि तीनो का उत्तर यदि " हाँ " में है तो फिर कोई कामना ही न रखो मन में . बस जीवन तो जी ही लिया है हमने . 
लेकिन यदि उत्तर " न " में है तो घबराने की कोई बात ही नहीं है मित्रो ,क्योंकि यदि आप इस सन्देश को पढ़ रहे है तो आप अभी जीवित है. यानी कि ईश्वर ने कुछ मौके और रख छोड़े है ,आपके लिए कि आप अपना जीवन सार्थक बनाए . बस उन्ही मौको को खोजिये . लोगो को प्रेम करिए . इस संसार को कुछ तो वापस जरुर कीजिये . और खुश रह कर जीवन को जिये . [ क्योंकि जीवन तो जीना ही है , जब तक की मृत्यु घटित नहीं होती है , तो क्यों न इसे ख़ुशी से जिए ] [ यहाँ मैं सुख की बात नहीं कर रहा हूँ मित्रो . सुख का ख़ुशी से कोई लेना -देना नहीं है ]. 
बस ख़ुशी आपकी अपनी बंदगी है , आपकी अपनी रवानगी है . यही जीवन है और यही सत्य है .

प्रणाम
विजय

Friday, February 3, 2012

मैं यह जान गया हूँ .....!!!

मैं यह जान गया हूँ कि कितना ही बुरा क्यों न हुआ हो और आज मन में कितनी ही कड़वाहट क्यों न हो, यह ज़िंदगी चलती रहती है और आनेवाला कल खुशगवार होगा.

मैं यह जान गया हूँ कि किसी शख्स को बारिश के दिन और खोये हुए लगेज के बारे में कुछ कहते हुए, और क्रिसमस ट्री में उलझती हुई बिजली की झालर से जूझते देखकर हम उसके बारे में बहुत कुछ समझ सकते हैं.

मैं यह जान गया हूँ कि हमारे माता-पिता से हमारे संबंध कितने ही कटु क्यों न हो जाएँ पर उनके चले जाने के बाद हमें उनकी कमी बहुत शिद्दत से महसूस होती है.

मैं यह जान गया हूँ कि पैसा बनाना और ज़िंदगी बनाना एक ही बात नहीं है.

मैं यह जान गया हूँ कि ज़िंदगी हमें कभी-कभी एक मौका और देती है.

मैं यह जान गया हूँ कि ज़िंदगी में राह चलते मिल जाने वाली हर चीज़ को उठा लेना मुनासिब नहीं है. कभी-कभी उन्हें छोड़ देना ही बेहतर होता है.

मैं यह जान गया हूँ कि जब कभी मैं खुले दिल से कोई फैसला लेता हूँ तब मैं अमूमन सही होता हूँ.

मैं यह जान गया हूँ कि हर दिन मुझे किसी को प्यार से थाम लेना है. गर्मजोशी से गले मिलना या पीठ पर दोस्ताना धप्पी पाना किसी को बुरा नहीं लगता.

मैं यह जान गया हूँ कि लोग हमारे शब्द और हमारे कर्म भूल जाते हैं पर कोई यह नहीं भूलता कि हमने उन्हें कैसी अनुभूतियाँ दीं.

मैं यह जान गया हूँ कि मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है.
 
 मैं यह जान गया हूँ कि मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है.

Monday, January 30, 2012

जीवन जीने की कला ......!!!!

प्रिय मित्रों ;
नमस्कार

जीवन जीना भी एक कला है . अगर हम इस जीवन को अपनी किसी ARTWORK की तरह जिए तो  बहुत सुन्दर जीवन जिया जा सकता है .

जीवन एक स्वपन है . एक यात्रा है . एक निरंतर कोशिश है. एक पाने-खोने-पाने के मायाजाल में जीने और उसमे से निकलने की बदिश है .एक आस्था है . एक विश्वास है . एक सम्पूर्णता है . जीवन एक अनंत धडकन है . जीवन बस एक जीवन है.

मेरी आप सभी से ये उन्मुक्त प्रार्थना है कि , आप अब से अपने जीवन के हर क्षण को किसी कला को अंजाम देने की तरह जिए , फिर देखिये आपका जीवन कितना सुन्दर हो जायेंगा .

प्रणाम
प्रेम भरे जीवन के आलिंगनो के साथ .
आपका
विजय



Friday, January 27, 2012

सुख और दुःख


मेरे प्रिय ह्रदयम मित्रो :

सुबह की शुद्ध सुर्यकिरनो  के साथ आपका ह्रदयम पर स्वागत करता हूँ.
पिछले दिनों मुझे एक मित्र ने पुछा ," स्वामी जी , इस जगत में अच्छे लोगो को ही दुःख ज्यादा क्यों होते है ? इसका उत्तर दिजियेंगा ! "

मैंने उन्हें दो उत्तर दिए जो मैं आप सबके साथ बाँट रहा हूँ .


पहला उत्तर : प्रिय मित्र . ये ईश्वर के द्वारा बनाया गया DEFAULT MECHANISM है  ,स्वंय भगवान भी जब मनुष्य रूप में यहाँ अवतरित हुए , तो उन्हें भी दुःख भोगना पढ़ा .
ज़हर ,सुकरात को ही पीना पढ़ा था
सूली पर जीसस को ही चढ़ना पढ़ा था
वनवास में श्री राम को ही जाना पढ़ा था .
ईश्वर की बनायी हुई इस दुनिया में युगों युगों से ये घटित हो रहा है , कि अच्छे इंसानों को ही दुःख ज्यादा प्राप्त होते है और उन्हें ही असमय मृत्यु को स्वीकार करना पढता है .

दूसरा उत्तर : मित्र , हम सब एक अजीब से MENTAL PERCEPTIONS  के साथ जी रहे है . दरअसल जो दुःख अच्छे लोगो को प्राप्त होते है , वो दुःख बुरे लोगो भी प्राप्त होते है लेकिन जहाँ बुरे लोगो को ये दुःख जीवन की अन्य घटनाओं की तरह एक और घटना प्रतीत होती है , क्योंकि वे खुद बुरे कार्यो में लिप्त रहते है . वहीँ अच्छे लोगो को ये दुःख कचोटते है और तकलीफ देते है . दूसरी बात , कि जिस तरह से  अच्छे लोग और बुरे लोगो  की विवेचना हम खुद करते है , अच्छे और बुरी घटना की विवेचना भी हम खुद करते है . दरअसल अदालत हम खुद ही बनाते है और सजा भी खुद ही देते है .

इसलिए इस संसार में , भाग्य से हमें जो भी मिलता है उसे ईश्वर का प्रसाद ही समझ कर उसे ग्रहण कर लेना चाहिए और जीना चाहिए .
जिस तरह से जीसस ने सूली पर चढ़ना  स्वीकार किया .
जिस तरह से श्री राम ने वनवास पर जाना स्वीकार किया .
उसी तरह से हमें जो भी घटित होता है , उसे अपने भाग्य और जीवन का एक हिस्सा समझ कर जीवन के अगले क्षण की ओर अग्रसर होना चाहिए .

प्रणाम

प्रेम तथा जीवन से भरे आलिंगनो के साथ
आपका
विजय

 

Thursday, January 26, 2012

हम अपने हृदय में झांके

मेरे प्रिय हृदयम मित्रों ;

सांध्य नमस्कार !

ये अक्सर होता है कि , हम सारे संसार में बहुत कुछ ढूंढते है , दूसरों को बारे में सोच- सोच कर निर्णय लेते है . ये भी , हम सोचते है कि , हम सब कुछ जानते है .. लेकिन क्या वाकई ऐसा होता है  कि हम सब कुछ जानते है . दरअसल सबसे ज्यादा जरुरी है , कि हम अपने हृदय में झांके और अपने आप को सबसे पहले समझे , तब ही कहीं जाकर हम दूसरों को समझने की थोड़ी सी बुद्धि  प्राप्त कर पायेंगे .

यही जरुरत है , इस क्षण की . इस आयु की . इस जन्म की .
कि ,हम अपने ह्रदय में झांककर अपने आप को पहले जान ले .
इससे ईश्वर को समझना आसान हो जायेंगा

प्रणाम

प्रेम तथा जीवन से भरे आलिंगनो के साथ
आपका
विजय

Friday, January 20, 2012

हर दिन की शुरुवात....!!




मेरे प्यारे दोस्तों, आज का दिन एक और नया दिन है आपके जीवन में .इसके लिए प्रभु को धन्यवाद देना न भूले और इस दिन की तथा हर दिन की शुरुवात कुछ इस तरह से करे.
१.      आँखे बंद करके दुनिया के लिए प्रार्थना करे.
२.     मुस्कराईये
३.     अतीत को भूल जाए.
४.     खुद के सहित सभी को माफ़ करे.
५.    दिल खोलकर हंसिये.
६.      धीरे से kiss  करे.
७.    बच्चो की तरफ देखकर हाथ हिलाए.
८.     प्रकृति में समा जाईये.
९.      अपने काम में १००%  effort दीजिये.
१०.  अपने दिल, दिमाग और शरीर को शांत रखे .
११.  सबके प्रति दयालु बने रहे.
१२. प्रकृति में हर किसी के लिये प्रेम रखे .
और हाँ , सबसे मुख्य बात अपने जीवन से प्रेम करना न भूले .
धन्यवाद और प्रणाम
विजय 

Tuesday, January 10, 2012

how to bury the past and move on:


My Dear Souls;

Today I would like to suggest few tips on how to bury the past and move on:

  1. Understand that nothing is permanent in life.
  2. Things, people and relationships do change, and we should be ready to accept this fact.
  3. It takes huge time involvement and investment to understand people, so don’t rush into a serious relationship while the scars of the first one are still fresh
  4. Don’t spoil or throw away your own happiness and joy in life, because of the mistakes, faults and imperfections in others.
  5. Relationships collapse due to expectations and very often less realistic ones. so if you want to have a lasting relationship, have minimum expectations
  6. Don’t remain obsesses with what you have given in the relationship.
  7. Also celebrate what you have received, what you have given was also a part of a happy , joyful, loving relationship , so don’t hold on to it, let go and move on !

I am sure these valuable tips will help you all to overcome your personal issues on past and relationship. I can only wish a great life for all my members & friends.

Pranaam
Love, Light & Hugs
Vijay